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१३५. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

बारडोली
४ फरवरी, १९२२

प्रिय चार्ली,

तुम्हारा तार मिला । पूर्वी आफ्रिकाके बारेमें मुझे इससे अच्छे परिणामोंकी आशा नहीं थी, और इन दिनों मैं दक्षिण आफ्रिकासे भी कोई ज़्यादा आशा नहीं रखता । पर जैसे भी हो वहाँके भारतीय अपनी बातपर डटे ही रहेंगे। तुम जितना कर सकते हो अवश्य करो, पर मैं चाहूँगा कि मेरी भाँति तुम भी यह महसूस कर लो कि जबतक भारतकी स्थितिमें काफी सुधार नहीं हो जाता, तबतक अन्य उपनिवेशोंकी दशामें भी किसी अधिक सुधारकी आशा नहीं की जा सकती । तुमको अन्दाज नहीं हो सकता कि भारतमें अमन और कानूनके नामपर कैसे-कैसे नृशंस कार्य किये जा रहे हैं। जो हो रहा है, वह पंजाब में की गई हरकतोंसे भी सचमुच बहुत बुरा है । सौभाग्य से अब लोग जान-बूझकर अपनी शक्तिके कारण उसे सहन कर रहे हैं, कमजोरीके कारण नहीं। मैं जानता हूँ कि इसमें अभी सुधारकी गुंजाइश है। इसीलिए बारडोलीका निर्णय किया गया है ।

यदि कोई ऐसी बात हो जिसके बारेमें मिल-बैठकर बात करना जरूरी हो, तो तुम बारडोली आ जाओ । सूरतसे यहाँ पहुँचने में डेढ़ घंटा लगता है। कोलाबासे सूरतके लिए रातमें ९ बजकर २० मिनटपर एक बड़ी अच्छी गाड़ी मिलती है, जो ६ बजे सुबह सूरत पहुँचा देती है । तुम १० बजे सुबह बारडोली पहुँच सकते हो ।

वाइसरायको लिखा मेरा पत्र[१] तुम अवश्य पढ़ना ।

सप्रेम,

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० २६०९ ) की फोटो - नकलसे ।

 
  1. १ फरवरी, १९२२ का ।