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१३४. पत्र : महादेव देसाईको

बारडोली
३ फरवरी, १९२२

चि० महादेव,

तुम्हारे पत्रका उत्तर मैंने भेजा है । आशा है तुम्हें मिल गया होगा। तुम्हारे पत्रोंका उपयोग में नियमित रूपसे करता रहता हूँ ।

जबतक तुम जेलरकी अनुमतिसे कुछ भी काम करते हो तबतक मैं कोई कठिनाई नहीं देखता । और जब जान-बूझकर और खुले तौरपर जेलके नियमोंको भंग करनेकी बात हो तब तो कठिनाईका कोई सवाल ही नहीं उठता। नियमोंका भंग कब किया जा सकता है, इसके बारेमें मैं तुम्हें लिख ही चुका हूँ ।

यह तो तुमने देखा ही होगा कि बारडोली शुरुआत करे, यह निश्चय हो चुका है । अब मैंने नियमानुसार वाइसरायको अल्टीमेटम भेजा है। उसकी अवधि ११ तारीखको पूरी होती है । इसलिए ११ तारीखको हमें कुछ करके बताना होगा । मेरा पत्र वाइसरायको आज मिल जाना चाहिए। उसमें लिखी हुई माँगोंको यदि वे स्वीकार करते हैं तो फिलहाल सविनय अवज्ञा बन्द रहेगी। मेरी माँग यह है कि वाइसराय अपनी विज्ञप्ति वापस ले लें, कैदियोंको रिहा करें और भविष्यमें शान्त प्रवृत्तियोंमें हस्तक्षेप न करने की घोषणा करें। अगर वे ऐसा करें तो हम फिरसे शान्तिपूर्वक अपने कार्यका संगठन करने में जुट जायेंगे। इन मांगोंमें समाचारपत्रोंको स्वतन्त्रता प्रदान करनेकी बात आ जाती है। इस माँगको तो वाइसराय कदाचित् स्वीकार नहीं करेंगे लेकिन अन्ततः उन्हें इसे स्वीकार करना ही होगा, बशर्ते कि बारडोली बलिदानकी शक्तिका परिचय दे और देशके अन्य भाग शान्त रहें ।

तुम लोग तो अब वहाँ स्वराज्यका तन्त्र चलाने लगे होगे। तुम्हें अध्यक्ष आदिका चुनाव करके ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए कि हरएक व्यक्तिका मिनट-मिनटका हिसाब लिया जा सके ।

मेरे साथ रामदास और कृष्णदास हैं । गंगावेन भी आई हैं। थोड़े समयमें आश्रमसे कातने और बुननेवाले लोगोंको बुलानेवाला हूँ । यहाँ बुनाईका काम कुछ ढीला जरूर है।

विट्ठलभाई अधिकतर यहीं रहेंगे ।

तुम्हारा स्वास्थ्य बहुत अच्छा होना चाहिए।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ७८६६) की फोटो नकलसे ।