१३३. पत्र : वी० ए० सुन्दरम् को
बारडोली
३ फरवरी [१९२२][१]
तुम्हारी टिप्पणियाँ मिल गईं। जाहिर है कि तुम मुझसे यह उम्मीद तो नहीं ही करते कि मैं तुम्हें अक्सर पत्र लिखूं । मौन रखनेके कालमें तुम्हारे विकासपर मैं नजर रख रहा हूँ और ईश्वरसे तुम्हारे लिए प्रार्थना कर रहा हूँ । तुम्हारे मौन रखने से अवश्य ही लाभ होगा । दिनमें एक बार भोजन करना, अर्ध-उपवास कहा जा सकता है, पर अक्सर वह उपवास होता ही नहीं। लेकिन इससे फर्क क्या पड़ता है कि उसे कहा क्या जाता है ? तुम संयमसे रह रहे हो, बस यही काफी है ।
तुम अगर रोजाना नियमपूर्वक तीन-चार घंटे कताई नहीं करते तो मेरी यही सलाह है कि इसे जरूर शुरू कर दो ।
मैं तुम्हारी इस बात से बिलकुल सहमत हूँ कि अपने-आपको बिलकुल निर्दोष बनाना, पूर्ण बनाना, अपने देशकी परम पूर्ण सेवा करना है। और देशकी परम पूर्ण सेवा तभी सम्भव है जब वह समूची मानवताकी सेवासे मेल खाती हो । पूर्णता प्राप्त करने के कई तरीके हैं । कुछ लोग उसे मौन साधना द्वारा प्राप्त करते हैं तो कुछ कर्मठताके द्वारा । उद्देश्य दोनों ही का लगनसे सेवा होना चाहिए ।
इसलिए तुमको बारडोली के बारेमें तबतक कोई चिन्ता नहीं करनी चाहिए जबतक तुम्हें यह पक्का विश्वास हो कि तुम स्वयं भी उसी दिशामें प्रयत्नशील हो ।
हृदयसे तुम्हारा,
बापू
अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ३२०२ ) की फोटो - नकलसे ।
- ↑ मूलमें सन् “ १९२१" लिखा है, परन्तु गांधीजी ३ फरवरी, १९२१ को बारडोली में नहीं थे और न तब बारडोलीकी समस्यापर चर्चा ही चल रही थी, इसलिए स्पष्ट है कि १९२३ की जगह गलतीसे १९२१ लिख दिया गया होगा ।