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चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको लिखे पत्रका अंश

हैं । उन्होंने प्रतिज्ञा की है कि यदि खुलनाके उन चार गाँवोंमें, जिनसे उनका घनिष्ठ परिचय है; छः मासके भीतर अपनी आवश्यकताकी पूर्ति करने लायक काफी सूत नहीं कातने लगते तो वे उन गाँवोंको त्याग देंगे। यह साधु-चरित रसायनशास्त्री अब केवल खादी ही पहनता है और उसे पहनकर गर्वका अनुभव करता है। उन्हें खादीके अतिरिक्त अन्य प्रकारका वस्त्र पहननेमें लज्जा आती है।

खोजा भाइयों और बहनोंको ऐसे उदाहरणोंपर विचार करके उनका अनुकरण करना चाहिए। मैं जानता हूँ कि खोजा-जैसी छोटी जातिमें, जहाँ कंगाली लगभग है ही नहीं, यकायक इतनी सादगी आना कठिन है । वे तो दान देने में ही धर्म मानते हैं। उनसे मैं इतना ही कहता हूँ, आपकी जाति छोटी-सी है, ऐसा आप क्यों मान बैठते हैं ? आप क्या तीस करोड़ लोगोंसे अलग हैं ? आप तो इन तीस करोड़ लोगों के दुःख-सुखमें निश्चय ही सम्मिलित हैं । इन तीस करोड़में से जबतक एक भी भाई [भखमरी से ] हाड़ और चाम मात्र रहता है और एक भी बहनको उचित धन्धा न मिलने से अपनी पवित्रता बेचनी पड़ती है, तबतक आपको और मुझे अवश्य ही लज्जित होनेका कारण है । इस कारण मुझे आशा है कि खोजा और ऐसी ही अन्य जातियोंके लोग, जिन्होंने अभीतक स्वदेशीका महत्त्व नहीं समझा है, अब उसे समझ जायेंगे और अमीर और गरीब सभी खोजाओंके घरोंमें चरखा चलने लग जायेगा और खादीका चलन हो जायेगा। मुझे यह भी आशा है कि अब कोई भी खादी पहननेमें न शरमायेगा बल्कि खादीको ही सच्चा श्रृंगार मानेगा ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन,२-२-१९२२

१३२. चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको लिखे पत्रका अंश

बारडोली
३ फरवरी, १९२२

आपके चरखे और 'रामायण' से ईर्ष्या होती है । आशा है आपकी 'रामायण', वाल्मीकिकी 'रामायण' का भ्रष्ट अनुवाद न होकर, कम्बणकी[१] मौलिक कृतिपर आधारित होगी जिसके बारेमें पोपकी[२]'तमिल हैंडबुक' में मैं काफी पढ़ चुका हूँ ।

[ अंग्रेजीसे ]
जेल डायरी
  1. तमिल रामायणके रचयिता ।
  2. जॉर्ज उग्लो पोप (१८२०-१९०८); दक्षिण भारतमें ईसाई धर्मके प्रचारक; फर्स्ट लेसंस इन तमिल, ए हैंडबुक ऑफ द ऑर्डिनरी डायलेक्ट ऑफ द तमिल लैंग्वेज और अन्य ग्रन्थोंके लेखक ।