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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रस्तावों[१] में काफी गुंजाइश छोड़ी गई है, उसके अनुसार सहयोगी और असहयोगी, वकील और साधारण-जन सभी इसमें शामिल हो सकते हैं, पर वकालत करनेवाले किसी भी वकीलके लिए स्वयंसेवक बनना बड़ा ही बेतुका, लगभग पाखण्ड जैसा लगता है ।

और फिर असहयोगके सम्बन्धमें कांग्रेसने अबतक जितने प्रस्ताव पास किये हैं उनकी भावनासे, और उनकी आपने जब-तब जो व्याख्याएँ की हैं, उनके अनुसार भी यह बिलकुल गलत मालूम पड़ता है कि देशके कौलको निभाने में असमर्थ कोई भी व्यक्ति एक प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्ताके रूपमें जनताके सामने आये ।

(२) प्रतिज्ञाके[२] खण्ड (४) में हर स्वयंसेवकसे यह अपेक्षा की गई है कि वह " हाथकते और हाथबुने खद्दरके अतिरिक्त अन्य कोई वस्त्र" धारण नहीं करेगा। क्या यहाँ खद्दर शब्दका प्रयोग उसके संकुचित शाब्दिक अर्थमें किया गया है जिसका मतलब होता है हाथबुना सूती कपड़ा या इस शब्दका प्रयोग अधिक व्यापक अर्थ में किया गया है, जिसमें ऊनी, सूती, रेशमी, आदि सभी वस्त्र आ जाते हैं, वे सभी वस्त्र जो हाथकते सूतसे हाथसे बुनकर तैयार किये गये हों ?

आपका, आदि,
रामदास छोकरा
बार-एट-ला
लायलपुर

मैंने प्रकाशन के लिए उपर्युक्त पत्रके वे सभी अंश निकाल दिये हैं जिनमें आलोचना की गई थी। मेरी समझमें कांग्रेसके प्रस्तावके मुताबिक तो वकील लोग स्वयंसेवक दलमें अवश्य शामिल हो सकते हैं। मुझे मालूम है कि विषय समितिने जान-बूझकर उसमें परिवर्तन किया था और उन असहयोगियोंके लिए गुंजाइश निकाली थी जो पूर्ण असहयोगी नहीं कहे जा सकते । खादीनगर में बंगालके प्रतिनिधियोंके साथ हुई अपनी वार्ताका विवरण मैंने नहीं देखा । लेकिन मुझे याद नहीं पड़ता कि मैंने उसमें कहा हो कि कांग्रेसके प्रस्तावके अनुसार वकील लोग स्वयंसेवक नहीं बन सकते । 'यंग इंडिया' में अपनी टिप्पणियाँ मैंने करीब-करीब उसी वक्त लिखी थीं। मुझे तो इतना ही ठीक- ठीक याद है कि मैंने कहा था कि वकील लोग पदाधिकारी नहीं बन सकते । वे कार्यकारिणी समितियोंके सदस्य नहीं बन सकते । लेकिन स्वयंसेवकोंके लिए जो प्रतिज्ञा रखी गई है, उसका एक प्रयोजन यह भी है कि दल भंग करनेके सरकारी आदेशोंका प्रभाव खत्म कर दिया जाये। मैं तो समझता हूँ कि प्रतिज्ञा-पत्रपर ईमानदारीसे हस्ताक्षर करनेवाला कोई भी वकील जेल जाने लायक शुद्ध होता है । और वह जेल

  1. और
  2. देखिए “भाषण: अहमदाबादके कांग्रेस अधिवेशन में - १, २८-१२-१९२१ ।