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१३०. वकालत करनेवाले वकील और स्वयंसेवकों का कार्य

सम्पादक

'यंग इंडिया'

महोदय,

(१) क्या वकालत करनेवाले वकीलोंको स्वयंसेवकोंकी हैसियतसे नाम लिखवाने की अनुमति है ?

१२ तारीखके[१]'यंग इंडिया' में आपने वकीलोंके बारेमें लिखते हुए कहा था : "इसलिए कांग्रेसने[२] जान-बूझकर ही उनके लिए एक सम्मानपूर्ण मार्ग खोल रखा है। मूल प्रस्तावके अनुसार केवल वही लोग स्वयंसेवक हो सकते थे जो असहयोग कार्यक्रमको पूरी तरहसे निबाहने की क्षमता रखते थे । पर अब स्वयंसेवक दलके लिए सहज नियम बना दिये गये हैं, उनमें से अधिकांश तो विश्वासोंसे ही सम्बन्धित हैं । "

दूसरी ओर, अहमदाबादमें बंगालके प्रतिनिधियोंसे हुई, आपकी वार्ताका जो विवरण[३]।२० जनवरी, १९२२ के 'ट्रिब्यून' में प्रकाशित हुआ था, उसमें निम्न- लिखित अनुच्छेद आया है :

'यह पूछे जानेपर कि एक वकालत करनेवाला वकील प्रस्तावके अनुसार किस तरह देशकी सेवा कर सकता है, महात्माजीने कहा : वकालत करनेवाला वकील निश्चय ही खादी पहन सकता है किन्तु वह स्वयंसेवक नहीं बन सकता ।

प्र० : इस दशामें आदमियोंकी कमीसे कुछ स्थानोंमें काम रुक जायेगा ।

महात्माजी :... अछूतोंसे सम्बन्धित अपने काम में या नशाबन्दीके काम में, या स्वदेशीके प्रचारके काममें उनसे मदद लें, किन्तु वे स्वयंसेवक दलके सदस्य नहीं बन सकते । स्वयंसेवक दल सरकारी घोषणाओंकी अवहेलना करके संगठित किया जा रहा है और केवल वही लोग जेल जाने योग्य हैं जिनके विचार शुद्ध हैं।"

क्या यह विवरण वस्तुतः ही गलत है या फिर इधर हालमें इस सम्बन्धमें आपके विचारोंमें कोई परिवर्तन हुआ है ? सामान्य किस्मके, वकालत करनेवाले वकीलोंके लिए सवाल इतना सीधा-सुलझा नहीं है। इसलिए कि कांग्रेसके

  1. देखिए “ टिप्पणियाँ ", १२-१-१९२२ का उप-शीर्षक “ वकीलोंकी कठिनाई ” ।
  2. अहमदाबादमें दिसम्बर १९२१ में हुई कांग्रेस ।
  3. १४-१-१९२२ को अमृतबाजार पत्रिकामें प्रकाशित विवरणके लिए देखिए " भेंट : बंगालके प्रतिनिधियोंसे ", २९-१२-१९२१।