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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप हजारों घरोंसे भूख दूर भाग गई है । लोग जानते हैं कि स्वराज्यका मतलब देशके धन, कानून, पुलिस और सेनापर उनका अधिकार होना है । वे जानते हैं कि जबतक पंजाबका घाव भर नहीं जाता और खिलाफत के साथ किये गये अन्यायका निराकरण नहीं किया जाता, तबतक शान्ति नहीं हो सकती ।

राष्ट्रोंकी प्रगति क्रमिक विकास और क्रान्ति दोनों तरीकोंसे हुई है । क्रमिक विकास और क्रान्ति दोनों ही समान रूपसे जरूरी हैं । जैसे जन्म और उसके बादका काल धीमे और सुनिश्चित विकासकी प्रक्रिया है वैसे ही मृत्यु जो कि शाश्वत सत्य है, एक क्रान्ति है । मानवके विकासके लिए स्वयं जीवनके समान ही मृत्यु भी आवश्यक है। ईश्वर सबसे बड़ा क्रान्तिकारी है; संसारने इतना बड़ा क्रान्तिकारी न कभी देखा है और न कभी देखेगा । वह प्रलय करता है । एक क्षण पहले जहाँ शान्ति थी, वहाँ वह तूफान भेजता है । वह जिन पर्वतोंको अत्यधिक सावधानी तथा बड़े धैर्य के साथ बनाता है, उन्हें नष्ट भी कर देता है । मैं आकाशको देखता हूँ और उसे देखकर मेरा हृदय विस्मय-विमुग्ध हो जाता है, आश्चर्यसे भर जाता है। मैंने भारत और इंग्लैंड दोनोंके शान्त नीले आकाशमें बादलोंको घिरते और भयंकर गर्जन- तर्जन करते देखा है, जिससे मैं अवाक् रह गया हूँ । इतिहासमें तथाकथित नियमबद्ध प्रगतिकी अपेक्षा चमत्कारपूर्ण क्रान्तियोंके अधिक उदाहरण मिलते हैं; और यह बात जितनी इंग्लैंडके इतिहासपर लागू होती है, उतनी और किसी देशके इतिहासपर लागू नहीं होती । मैं पत्र लेखकको बताना चाहता हूँ कि मैंने ऐसे लोगोंको भी देखा है जो धीरे-धीरे लड़खड़ाते हुए पहाड़पर चढ़ते हैं और ऐसे लोगोंको भी देखा है जो महान् ऊँचाइयोंको मानो उड़ते हुए पार कर जाते हैं ।

स्वराज्य भारतका जन्मसिद्ध अधिकार है। ब्रिटिश प्रणाली उसके स्वराज्यके मार्गमें बाधक बनी हुई है। भारत अपनी खोई हुई आजादीको फिरसे प्राप्त करनेके लिए संघर्ष कर रहा है और ऐसा करते हुए वह इतिहासकी पुनरावृत्ति करनेका नहीं, बल्कि नया इतिहास बनानेका प्रयत्न कर रहा है। हाँ, इस प्रक्रियामें वह कभी-कभी इतिहासकी पुनरावृत्ति करने की इच्छाका आभास भी देता है, जैसा कि बम्बई, मद्रास और मालेगाँव में दिया, और यह सचमुच दुःखकी बात है । मलाबारको इस आन्दोलनके साथ नहीं मिलाना चाहिए । स्वतन्त्रताका मतलब आवश्यक रूपसे यह भी है कि गलती करनेकी आजादी हो । अन्तमें पत्र-लेखक और उनके जैसे विचार रखनेवाले अन्य व्यक्तियोंको मैं विश्वास दिलाता हूँ कि यह आन्दोलन किसीके प्रति दुर्भावनाका नहीं, बल्कि सबके प्रति सद्भावनाका आन्दोलन है। समय ही इसकी सत्यता सिद्ध कर सकता है। प्रसवकी पीड़ा हमें उस पीड़ाके पीछे छिपे नये सृजनको नहीं देखने देती । हम प्रतीक्षा और प्रार्थना करें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-२-१९२२