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एक ईसाई धर्म प्रचारकके भ्रमपूर्ण निष्कर्ष

लेकिन बम्बई और मद्रासमें जो बातें हुई हैं, क्या वे विश्वके इतिहासमें नये अनुभव हैं ? क्या यूरोपमें अक्सर ऐसी बातें नहीं हुई हैं ? क्या इंग्लैंड और स्काटलैंडमें ऐसी बातें बार-बार नहीं हुईं ? क्या किसी भी स्थानकी उत्तेजित भीड़ ठीक वैसा ही आचरण नहीं करती, जैसा कि बम्बई और मद्रासकी भीड़ने किया ? भीड़ने बम्बई और मद्रासमें जो काम किये, क्या आयरलैंडके लोगोंने उससे भी अधिक बुरे काम नहीं किये हैं ? और क्या उपद्रवोंके बलपर ही उन्होंने वह चीज नहीं पा ली है, जो स्वराज्यके बराबर है ?

बम्बई और मद्रासमें हुए उपद्रवोंसे मैं घृणा करता हूँ, किन्तु एक भिन्न दृष्टिकोण- से। मैं आयरलैंडके उपद्रवोंसे भी घृणा करता हूँ । लेकिन आयरलैंड के उपद्रवों और बम्बई व मद्रास में हुए उपद्रवोंमें एक फर्क है । आयरलैंडका उपद्रव व्यावहारिक और सच्चा था । व्यावहारिक इसलिए था कि आयरलैंडके वातावरणसे बेमेल नहीं था; और सच्चा इसलिए था कि आयरलैंडवासियोंने अपने [ हिंसात्मक ] सिद्धान्तको कभी छिपाया नहीं । भारतका उपद्रव न व्यावहारिक था और न सच्चा । व्यावहारिक वह इसलिए नहीं था कि जहाँतक मैं भारतीय मानसको जानता हूँ, भारतमें उपद्रव नहीं पनप सकता। भारतीय मानसका उससे कोई मेल नहीं बैठता । और वह सच्चा इस- लिए नहीं है कि भारतीय आन्दोलन पूर्ण रूपसे अहिंसक होने का दावा करता है; हालाँकि यह अहिंसक नीति इस बातको भी ध्यान में रखकर अपनाई गई है कि हमारा कार्य किस तरह सिद्ध होगा । असहयोगियोंको ऐसा कोई काम अपने हाथोंमें नहीं लेना चाहिए जिसे वे अहिंसक नहीं रख सकते ।

लेकिन श्री मैक्फरलेन मद्रासके उपद्रवसे इतने भयभीत हो गये हैं कि वे भारतको स्वराज्य के योग्य ही नहीं समझते। इसके विपरीत मेरे विचारमें वर्तमान अस्वाभाविक तथा बेईमानीकी स्थितिकी अपेक्षा तो उपद्रवकी स्थिति भी अच्छी हो सकती है । इस स्थितिको हर कीमतपर समाप्त करना है । बात केवल यह है कि वर्तमान नेतागण हिंसात्मक आन्दोलन नहीं चला सकते। उनमें से अधिकांश ऐसे हैं, जो न तो इसे चलाना चाहते हैं और न उनमें इसे चलानेकी योग्यता ही है । वे इसे अहिंसक रखनेका भगीरथ प्रयत्न कर रहे हैं ।

श्री मॅक्फरलेनका दावा है कि वर्तमान शासन प्रणालीके अन्तर्गत भारतको असीम लाभ हुए हैं। लेकिन मेरा खयाल तो यह है कि इसकी कारगुजारियोंसे भारतको कुल मिलाकर नैतिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षति ही पहुँची है। नैतिक स्तर पहलेकी अपेक्षा आज बहुत गिर गया है। इस युगकी अनैतिकता परिष्कृत है और इसीलिए वह भ्रामक तथा और अधिक खतरनाक है । आर्थिक दृष्टिसे भारत आज पहलेकी अपेक्षा अधिक दरिद्र हो गया है । राजनीतिक दृष्टिसे भारत इतना पौरुषहीन हो गया है कि यहाँ लोगोंको अपने पतनका भी भान नहीं है ।

पत्र-लेखक जानना चाहते हैं कि इस आन्दोलनसे क्या लाभ हुए हैं। इसने जनतामें एक जबरदस्त जागृति पैदा कर दी है। जहाँ लोगोंने हाथ कताई बिलकुल छोड़ दी थी, वहाँ आज हजारों घरोंमें लाखों गज सूत काता जा रहा है। जहां हाथसे बने वस्त्रोंका उपयोग बिलकुल छूट गया था वहाँ आज हजारों स्त्री-पुरुष खद्दर पहन २२-२२