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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्राट्के उस अतिथिगृहमें, जिसे कारागार कहते हैं, आतिथ्य ग्रहण करनेके कारण अनुपस्थित रहेंगे । अतएव मेरा सुझाव है कि जिन प्रान्तोंसे ये देशभक्त आये थे वे एक-एक ऐसा प्रतिनिधि भेजें जो मतदानका अधिकार न होते हुए भी कमसे कम अपने सुझावोंसे तो समितिको लाभान्वित करे ही । अन्य प्रान्तोंको भी जिनका सीधा प्रतिनिधित्व समितिमें नहीं है मेरा सुझाव है कि वे भी अपना एक-एक प्रतिनिधि समिति के विचार-विमर्श में भाग लेने के लिए भेजें ।

अहमदाबादका जाड़ा

मित्रोंने मुझे प्रतिनिधियों और दर्शकोंका ध्यान इस बातकी ओर दिलानेको कहा है कि अहमदाबादमें जाड़ा न तो बम्बईकी तरह कम और न दिल्ली या अमृतसरकी तरह तेज होता है । अतएव उन्हें मामूली जाड़के कपड़े और बिछौना आदि लाना चाहिए । कांग्रेस अधिवेशन के पण्डालमें कुरसियाँ नहीं रखी जायेंगी । अतएव जूते रखनेके लिए खादी की थैलियाँ नाममात्र मूल्यपर दी जायेंगी । लोग चाहें तो अपनी-अपनी थैलियाँ भी ला सकते हैं । मण्डपके बाहर जूते रखना मुनासिब न होगा । स्वागत-समितिने भी बहुत सोच-विचारके उपरान्त जो लोग जूते बाहर उतारना चाहें उनके जूतोंकी हिफाजत के लिए किसी तरहका प्रबन्ध न करना ही तय किया है । खिलाफत सभामें तो जूतोंको कागज में लपेटकर अथवा दूसरी तरहसे साथ रखनेका सिलसिला है ही । लेकिन इस कठिनाईको दूर करने के लिए थैलियाँ रखना बड़ा अच्छा उपाय है । स्वागत-समिति बिजली की रोशनी, पानीके नल, टट्टी इत्यादिका बहुत अच्छा और खास तौर-पर इन्तजाम कर रही है जिससे कि प्रतिनिधियोंको यथासम्भव आराम हो और उन्हें सुविधा रहे । लेकिन मुझे स्वागत-समिति द्वारा आराम और सुविधा मिलने या न मिलनेका भविष्य-कथन नहीं करना चाहिए ।

इस्तीफे

आजकल अखबारोंमें सभी सरकारी विभागों में कर्मचारियों द्वारा इस्तीफे देनेकी खबरें बराबर आ रही हैं । ऐसे एक इस्तीफेकी नकल बेलगाँव (कर्नाटक) से मुझे मिली है । वह आरोग्य विभागके सहायक निदेशक के हैड क्लर्कका है, और उन्होंने कर्नाटक के नेता देशभक्त गंगाधरराव देशपाण्डेके' जेल भेजे जाने के विरोध में इस्तीफा पेश किया है । अपने इस्तीफे में उन्होंने अपनी कुछ शिकायतोंका भी जिक्र किया है; लेकिन वह उनके सरकारी नौकरी छोड़नेका गौण कारण है । असममें भी, वहाँकी सरकारकी दमन-नीति के विरोधमें, कई वकीलोंने वकालत बन्द कर दी है । मुझे भरोसा है कि इस तरह और भी अनेक इस्तीफे पेश होंगे और अनेक वकील वकालत बन्द कर देंगे ।

कठिनाइयोंका उदय

बिहारके एक भाई जिन्होंने अपना नाम भी प्रकट किया है, लिखते हैं:

..मैंने असहयोगको प्रत्येक मुस्लिमके लिए धार्मिक दृष्टिसे अनिवार्य मानकर पूरी निष्ठाके साथ उसका समर्थन किया था । मैंने यह मानकर कभी

१. विख्यात राजनीतिज्ञ, जो 'कर्नाटक केसरी' के नामसे जाने जाते थे ।

२. यहाँ केवल कुछ अंश दिये जा रहे हैं ।