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विदेशों में रहनेवाले भारतीय

बिखरे करोड़ों घरोंमें सूत और वस्त्र तैयार करना शुरू करें। स्वदेशी उनमें जितनी एकता पैदा करेगी उतनी दूसरी कोई चीज नहीं कर सकती ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-२-१९२२

१२८. विदेशों में रहनेवाले भारतीय

सम्पादक

'यंग इंडिया'

महोदय,

...केनियामें रहनेवाले हमारे देशवासियोंको यूरोपीय उपनिवेशोंके एक जबरदस्त आन्दोलनका सामना करना पड़ रहा है, और उधर फिजीमें हमारे असहाय भाइयोंकी हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है। उनकी मुसीबतें और कठिनाइयाँ इतनी अधिक हैं कि उनका बयान यहाँ नहीं किया जा सकता ।

आज ...यह आशा नहीं की जा सकती कि भारतकी जनता विदेशों में रहनेवाले भारतीयोंकी समस्याओंकी ओर बहुत अधिक ध्यान दे सकेगी; फिर भी हमारा फर्ज है कि हम उपनिवेशों में रहनेवाले अपने उन बदकिस्मत देश- भाइयोंके लिए कुछ-न-कुछ करें।...

...हमने उपनिवेशों में रहनेवाले भारतीयोंके लिए संगठित रूपसे प्रचार- कार्य करनेका निर्णय किया है। यदि उपनिवेशों में रहनेवाले भारतीय हमारे पास अपनी कठिनाइयोंके विवरण नियमित रूपसे भेजें तो हम अनुगृहीत होंगे । उन विवरणोंको यहाँके अंग्रेजी और देशी भाषाओंके अखबारोंके जरिये प्रचारित किया जायेगा। इस कामको ठीक ढंगले संगठित करनेके लिए जो सुझाव मिलेंगे, उनके लिए हम आभारी होंगे ।

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती '

आपके, आदि
तोताराम सनाढ्य [१]
बनारसीदास चतुर्वेदी

मैं आशा करता हूँ कि सच्ची लगनवाले ये कार्यकर्त्ता जो सहायता माँग रहे हैं, वह सब उन्हें अवश्य मिलेगी। जब मैं यह सोचता हूँ कि समुद्र-पार रहनेवाले अपने देशवासियों की स्थितिका विशेष ज्ञान होनेपर भी मैं उनके लिए खास तौरसे कुछ नहीं कर रहा हूँ, तब मुझे लज्जा अनुभव होती है। लेकिन यह सोचकर मुझे सन्तोष होता

  1. ये कई वर्ष तक फीजीमें रहे और अपने वहां के निवासका वर्णन करते हुए उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी थी। बादमें वे साबरमती आश्रममें आकर रहने लगे थे ।