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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं समझता हूँ कि इन बहादुर लेकिन सीधे-सादे देहातियोंको इस बात के लिए उकसाया गया है कि वे जिस रियासत में हैं, उसे उसका वाजिब कर अदा न करें । उनसे यहाँतक कहा गया है कि मैंने सिरोही रियासतके लोगोंसे कहा है कि कोई भी सवा रुपये से ज्यादा कर न दे । मुझे इस सबका कुछ पता नहीं है । किसीने भी मुझसे इस मामलेपर सलाह-मशविरा नहीं किया है। रियासतके मुख्य मन्त्री पंडित रमाकान्त मालवीयने मुझे इस सबकी सूचना देनेकी कृपा की है और वे बताते हैं कि मेरे नाम- पर बहुत शरारत की जा रही है । यदि मेरा यह लेख इन देशवासियों तक पहुँचे तो मैं उनसे यह कहना चाहूँगा कि उन्हें अपनी सब शिकायतें रियासत के अधिकारियोंके आगे रखनी चाहिए और कभी भी हथियारोंका सहारा नहीं लेना चाहिए। जिस करको वे अनुचित मानें, यदि उसकी अदायगी रोकना चाहें तो उन्हें ऐसा करनेका अधिकार है । परन्तु यह एक ऐसा अधिकार है जिसे कभी भी गैर-जिम्मेदारीसे प्रयोगमें नहीं लाना चाहिए। उन्हें जनमत तैयार करना चाहिए; और अपनी बात दुनियाके आगे रखनी चाहिए। यदि वे ये सावधानियाँ नहीं बरतेंगे तो वे हर चीजको और हर किसी को अपने खिलाफ पायेंगे और आखिरमें उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-२-१९२२

१२७. चरखके बारेमें डा० रायके विचार

सर प्रफुल्लचन्द्र रायने चरखेसे सम्बन्धित एक बॅगला पुस्तिकाकी एक बड़ी ही तर्क-संगत प्रस्तावना[१] लिखी है। उस समूची प्रस्तावनाका निम्नलिखित अनुवाद प्रकाशित करते हुए मुझे सचमुच बड़ी प्रसन्नता हो रही है। मुझे इस बातमें तनिक भी सन्देह नहीं कि रासायनिक गवेषणा और औद्योगिक संगठनके क्षेत्रमें प्राप्त की गई उनकी आश्चर्यजनक उपलब्धियोंकी भाँति ही घरेलू पैमानेपर की जानेवाली कताईका उनका संगठन और भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण और विस्मयकारी होगा। उनकी रासायनिक गवेषणाओंने भारतकी प्रतिष्ठामें चार चाँद लगा दिये हैं, उन्होंने जो उद्योग खड़े किये, उनसे बंगालको कई लाख रुपयोंकी आमदनी हुई और प्रतिभासम्पन्न बंगालियोंको काम भी मिला; परन्तु घरेलू पैमानेपर कताईका काम शुरू करनेका मतलब है लाखों बंगाली परिवारोंको भुखमरी और कंगाली तथा अधःपतनसे मुक्त करना और अकालों तथा उनके कारण फैलनेवाले रोगोंसे मुक्ति दिलाना और उनके घरोंमें हँसी-खुशीका वातावरण पैदा करना, जो पेट भरा होनेपर ही सम्भव है । मैं डा० रायकी इस उक्तिका पूरा समर्थन करता हूँ कि प्रथम स्वदेशी आन्दोलनके दौरान मैनचेस्टर या जापानके बदले बम्बई या अहमदाबाद से कपड़ा लानेसे बंगालको कोई लाभ नहीं हुआ है । स्वदेशीका पूरा-पूरा और तात्कालिक प्रभाव देखने के लिए जरूरी है कि हम पहले देश-भरमें

  1. यहाँ उद्धृत नहीं की गई ।