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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परन्तु मैं यह मानता हूँ कि हमें हर अप्रत्याशित संकटको टालनेके लिए हर सम्भव सावधानी बरतनी चाहिए। इसलिए मैंने पूरे जोरके साथ यह सलाह दी थी, और फिर देता हूँ कि बुद्धिमानी इसीमें है कि मैंने जिस प्रयोगकी देख-रेखका खुद उत्तरदायित्व लिया है, भारतके सभी भागोंको उसकी प्रतीक्षा करनी चाहिए। बंगालने बहुत कुछ किया है। उसने आश्चर्यजनक कार्य किये हैं, बहुत कष्ट सहे हैं । अब भी वह कष्ट सह रहा है और बहुत ही संयमसे काम ले रहा है । मैं बंगालके सभी नेताओंसे अपील करूँगा कि वे जरा दम लें और कोई भी नया कदम न उठायें। उन्हें वाणीकी स्वतन्त्रता और सभा-संगठनकी स्वतन्त्रताके अपने अधिकारपर हर तरहसे आग्रह करना चाहिए । लेकिन सामूहिक सविनय अवज्ञा या लगान-बन्दी, जो कि उसका एक रूप है, शुरू करनेका यह अवसर नहीं है। अभी तो कार्यकर्त्ताओंको जन-साधा- रणको यही सलाह देनी चाहिए कि वह चालू वर्षका वाजिब लगान अदा कर दे । इस तरह वे उसमें ज्यादा अच्छा अनुशासन कायम कर सकेंगे ।

और आन्ध्रके बारेमें ?

एक दूसरे मित्र पूछते हैं: “तो आपने आन्ध्रको लगान-बन्दीकी सलाह क्यों दी है ? इस तरह क्या आपने मालवीय सम्मेलनके साथ किये गये अपने इस करारको नहीं तोड़ा कि ३१ तारीख तक सामूहिक सविनय अवज्ञा शुरू नहीं की जायेगी ? " (ये टिप्पणियाँ ३० तारीखको लिखी जा रही हैं) मेरा उत्तर यह है कि मैंने आन्ध्रके लोगोंको सामूहिक सविनय अवज्ञा शुरू करनेकी सलाह नहीं दी है। मैं उन्हें उसकी तैयारीसे रोक नहीं सकता था। उन्होंने तो केवल नियत तिथिके अन्दर एक विशेष अवधिके लिए ही उसे स्थगित किया था, जिसका उद्देश्य अपना रास्ता टटोलना था । लेकिन सरकारने निश्चय ही उतावली करके मामलेको बहुत बिगाड़ दिया है । परन्तु आन्ध्र के लोग चतुर हैं और मुझे आशा है कि वे नम्रताका हुनर जानते हैं । सरकारकी उत्तेजनात्मक कार्रवाइयोंके बावजूद मुझे पूरी आशा है कि वे काफी नम्र रहेंगे और सामूहिक सविनय अवज्ञा तबतक शुरू नहीं करेंगे जबतक उन्हें ऐसा न लगे कि वे पूरी तरह तैयार हैं, और उन्हें यह विश्वास नहीं हो जाता कि वे कांग्रेस द्वारा निर्धारित सभी शर्तोंका पालन कर सकते हैं। इन शर्तों में अहिंसाका अपना एक विशिष्ट महत्त्व है। वैसे मुझे ज्यादा खुशी तो तब होगी जब आन्ध्र-सहित भारतका कोई अन्य भाग यह प्रयोग तबतक न करे जबतक कि मेरे प्रयोगके परिणाम निश्चित रूपसे ज्ञात न हो जायें ।

सामूहिक आन्दोलनसे सम्भावित खतरा

जहाँ हम जन-जागरणपर हर तरहसे आत्म-सन्तोषका अनुभव कर सकते हैं, वहाँ उसके सम्भावित निश्चित खतरोंकी उपेक्षा करना एक मूर्खता ही होगी। मैंने अभी-अभी पत्रोंमें यह खबर पढ़ी है कि एक लड़की मेरी बेटी होनेका ढोंग रच रही है और इस आधारपर हर प्रकारका आदर-सत्कार पा रही है। वैसे, अगर अच्छी और सुशील हों तो हजारों लड़कियोंको भी अपनी बेटियाँ माननेमें मुझे कोई आपत्ति