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टिप्पणियाँ

परेशान नहीं करना चाहिए। अपनी स्थानीय शिकायतोंको दूर कराने के लिए वे लड़ सकते हैं, लेकिन जबतक कि परिस्थितियाँ बहुत ही गम्भीर न हो जायें और जनमत उनके साथ न हो, तबतक वे अपनी लड़ाई में तीव्र असहयोगका तरीका न अपनायें । रियासतों में प्रजा अभी यह दावा नहीं कर सकती कि राजाओंपर वह अन्य सभी साधनोंको आजमाकर देख चुकी है। उसे जनमत तैयार करना चाहिए, आन्दोलन चलाना चाहिए और अन्य प्रकारसे अपनेको संगठित करना चाहिए। मैं अकसर यह बात सुनता हूँ कि कांग्रेस असहयोगके आगमनके बाद ही उपयोगी बनी है। यह वस्तु- स्थिति के बारेमें बिलकुल गलत खयाल है । सचाई यह है कि कांग्रेस आन्दोलनसे असह- योगके लिए मार्ग तैयार हुआ है । असहयोग कांग्रेसकी पहलेकी गति-विधियोंका उचित और स्वाभाविक परिणाम है । कांग्रेस भारतमें सदासे लोगोंकी शिकायतोंको प्रभावपूर्ण ढंगसे प्रकट करनेवाली सबसे बड़ी संस्था रही है । जन-साधारणकी शक्ति और दुर्बलता- का यह सच्चा मापदण्ड रही है। रियासतों की प्रजाकी भी अपनी कांग्रेसें और कान्फ्रेंसे होनी चाहिए, जो ब्रिटिश भारत के नमूनोंसे बिलकुल अलग हों और शायद उनका संचालन भी दूसरे ढंगसे होना चाहिए। वे इस मातृसंस्थाकी गलतियोंसे बहुत-कुछ सीख सकती हैं, पर उन्हें उस प्रारम्भिक अनुशासनमें से तो गुजरना ही होगा। किसी अन्यायको बढ़ाये चढ़ाये बिना ज्योंका-त्यों उजागर कर देना कोई छोटी बात नहीं है । पापकी तरह अन्याय भी अंधकारमें ही फलता-फूलता है । सूर्यके प्रकाशमें वह मर जाता है। इसलिए रियासतोंकी प्रजाको तेजी के साथ, सुव्यवस्थित ढंगसे अपने-आपको संगठित करना चाहिए। उसे अपने स्थानीय मामले राष्ट्रीय कांग्रेस में गड्डमड्ड करके खराब नहीं करने चाहिए। रियासतों के लोग, रियासतोंके क्षेत्रसे बाहर, कांग्रेस में और कांग्रेसके लिए काम कर सकते हैं, जैसा कि बहुत-से कर भी रहे हैं।

बंगालसे चेतावनी

एक मित्र हैं, पुराने और परखे हुए राष्ट्र-सेवी । बंगालके क्षितिजपर बार-बार जो अनिष्टकी आशंकासे युक्त बादल घिर आते हैं, उनकी सूचना देनेमें वे कभी भी चूकते नहीं हैं। इस बार उन्होंने एक आम लगानबन्दी आन्दोलनको शह देनेके खिलाफ चेतावनी दी है। उनका यह खयाल है कि चूंकि अधिकतर नेता जेलमें हैं, इसलिए बंगाल में उतावलेपनकी कार्रवाई बिलकुल सम्भव लगती है । मैं शिकायत नहीं कर सकता पर फिर भी यह कहे बिना नहीं रह सकता कि नेताओंकी गिरफ्तारी सर- कारकी अपराधपूर्ण मूर्खताके कारण हुई है। उसने शान्ति कायम रखनेवाले सच्चे लोगों के साथ शान्ति-भंग करनेवालोंका-सा बरताव किया है। सरकार हिंसाको निमन्त्रण दे रही है । वह मानो किसी निश्चित उद्देश्यके लिए, देशको हिंसाके लिए तैयार कर रही है। लेकिन इन मामलोंमें भी मुझे शिकायत नहीं करनी चाहिए। मैं यह मानता हूँ कि हममें से अधिकतर लोगोंको इस सबकी और इससे भी अधिककी आशंका थी; फिर भी हम इसी नतीजे पर पहुँचे कि हमें पूरी हिम्मतसे काम लेना चाहिए और बेझिझक आगे बढ़ना चाहिए। हमने ईश्वरपर भरोसा रखकर ही यह निर्णय लिया था, और आज भी उसीपर हमारा भरोसा है ।