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पत्रोंके संचालकोंको मैं यह बात याद दिलाना चाहता हूँ कि 'सत्याग्रही[१]जो थोड़े ही समय चला था, एक फुलस्केप कागजके सिर्फ एक ओर ही लिखा होता था ।

स्थगित वेतन

सरकारको धारवाड़के श्री विनायकराव जोशीकी पेंशन, जिसे आजकल स्थगित वेतन (डिफर्ड पे ) कहा जाता है, रोक देनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई। कारण सिर्फ इतना था कि उन्होंने अपने देशकी सेवा करनेकी कोशिश की। लेकिन दूसरी ओर सर माइकेल ओ'डायरकी पेंशन बरकरार है, जबकि वह हर अवसरपर शिक्षित भार- तीयोंकी निन्दा करता है, और बराबर इस ताकमें रहता है कि कब मौका मिले और वह् जन-साधारणपर उद्धततापूर्वक अपनी संरक्षकताकी धाक जमाये मानो वे छोटे-छोटे बच्चे हों, जिनपर किसी बड़े-बूढ़ेकी देख-रेख और चौकसी बराबर चाहिए ही । इसी प्रकार जनरल डायर भी, जो आजतक मानते हैं कि जलियाँवाला बाग में निर्दोष-निरीह लोगोंका कत्लेआम करके उन्होंने मात्र एक कर्त्तव्यका ही पालन किया, पेंशनका लाभ उठा रहे हैं । हमें यह बताया गया है कि उनकी पेंशनें रोकनेमें कानूनी कठिनाइयाँ हैं, और यदि कानूनी बाधा भी दूर की जा सके तो उनकी पेंशनें बन्द करना अनैतिक होगा। सचमुच भारतीयके लिए एक कानून है और अंग्रेजके लिए दूसरा! देशभक्तके लिए एक कानून है और अत्याचारीके लिए दूसरा ! एकके मामलेमें जो नैतिक है वही दूसरेके मामलेमें अनैतिक है ! श्री जोशीने सरकारको जो साहसपूर्ण उत्तर दिया है, और देशसेवा या अपनी पेंशनमें से एकको चुननेका मौका पड़ने पर अपनी पेंशनका त्याग करके जो देशभक्तिपूर्ण शौर्य दिखाया है, उसके लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ । श्री जोशीके त्यागसे भारतके ध्येयको बल मिला है। उनकी भौतिक हानिसे भारतको नैतिक लाभ हुआ है ।

पोलिटिकल एजेंसियाँ

दमनका जाल धीरे-धीरे सभी दिशाओंमें फैल रहा है । आजकल यह युवराजके आगे-आगे चलता है, मानो वह इस तरह लोगोंको उस शक्तिका परिचय दे रहा हो, जिसका कि युवराज प्रतिनिधित्व करते हैं। चूंकि वे इन्दौर पधारनेवाले हैं, इसलिए बाबू बद्रीलाल आर्यदत्त और बाबू छोटेलालको गवर्नर जनरलके एजेंटने इन्दौर कैम्पसे निकाल दिया है। रेजीडेंसी क्षेत्रके अन्दर सार्वजनिक सभाएँ न करनेके आदेश भी जारी कर दिये गये हैं। हो सकता है कि इन रेजीडेंसियों में सार्वजनिक जीवन उतना संगठित न हो जितना कि खास ब्रिटिश भारतमें है । लेकिन यदि यह उतना ही संगठित है, तो मुझे कैम्पके निवासियोंके कर्त्तव्यके बारेमें कोई सन्देह नहीं है । यदि वे अहिंसा कायम रख सकते हैं और यदि वे जंरा भी अच्छी तरह संगठित हैं, तो उन्हें आदेशोंके

  1. गांधीजीका अपंजीकृत समाचार - साप्ताहिक, जिसका प्रथम अंक ७ भप्रैल, १९१९ को प्रस ऐवटको चुनौतीके रूपमें रौलट कानूनोंके विरोधी आन्दोलनके दौरान निकाला गया था । जब गांधीजीने सविनय अवज्ञा मुल्तवी कर दी तब इसका प्रकाशन बन्द हो गया । देखिए खण्ड १५ ।