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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो कि प्रतियाँ तैयार करनेके लिए बहुतसे कार्यकर्त्ताओंको विशेष प्रयत्न करना होगा । साफ-सुन्दर अक्षरोंमें लिखी 'गीता' की किसी प्रतिको मुद्रित प्रतियोंकी अपेक्षा सदा ही अधिक महत्त्व दिया जायेगा । 'क्रॉनिकल' में मैंने पढ़ा है कि 'वन्देमातरम्' की २,००० रुपयेकी जमानत जब्त कर ली गई है । मेरा खयाल है कि उसे भी हस्तलिखित समाचारपत्रोंकी उत्तरोत्तर बढ़ती हुई फौजमें शामिल होना पड़ेगा। किसी-न-किसी दिन सभी असहयोगी समाचारपत्रोंका मुद्रण बन्द कर दिया जायेगा । छपाईको तो दबाया जा सकता है, लेकिन लिखाईको दबाना कठिन है। लेकिन मैं देख रहा हूँ कि उड़ीसा सरकारने नेताओंको यह नोटिस दिया है कि वे स्वयंसेवक वगैरह भरती करनेके बारेमें नोटिस न लिखें। अगर सरकार चाहे कि ऐसे शब्द बिलकुल लिखे ही न जायें तब तो उसे यह अपराध करनेवाले समस्त लेखकोंको, उनके शरीरको जेल भेजना पड़ेगा । लेकिन तब विचार अवरुद्ध होने की बजाय बिलकुल स्वतन्त्र हो जायेंगे। एक सच्चे और परखे हुए आदमीका मूक शब्द ऐसे आदमीके लिखित या मुद्रित शब्दसे कहीं अधिक प्रभावशाली होता है जिसे लोग न जानते हों, न अपना समझते हों। हर असहयोगीको पिछले तीन महीनोंके दमन और उसके फलस्वरूप आई जागृतिसे एक शानदार सबक लेना चाहिए, और उसे असहयोगके हितमें निकाले गये समाचारपत्रोंके दमनसे एक क्षणके लिए भी परेशान नहीं होना चाहिए।

और लिखे हुए समाचारपत्र

इलाहाबादका 'स्वराज्य', जिसकी जमानत जब्त हो गई थी, एक लिखित समा- चारपत्रके रूपमें निकलने लगा है। इसके सम्पादक बाबू रामकृष्ण लघाटे हैं। इसे बहुत साफ-सुन्दर अक्षरोंमें लिखा जा रहा है। छपाई और टाइपिंगके चलनसे किताबतकी कलाका चलन उठता जा रहा है । हस्तलिखित पत्रोंका निकलना यदि दीर्घकाल तक चलता रहा, तो इसके फलस्वरूप निश्चय ही इस सुन्दर कलाका पुनरुत्थान होगा। कुछ प्राचीन पाण्डुलिपियाँ 'सौन्दर्य और आनन्दकी अमर कृतियाँ हैं।' गोहाटीसे भी एक हस्तलिखित समाचारपत्र निकला है। यह हिन्दी और असमिया दोनोंमें लिखा जाता है और हर पखवाड़े निकलता है । मूल्य तीन धेले है । तीनों लिखित पत्रोंमें सबसे साफ लिखावट गोहाटीवाले पत्रकी है। इसका नाम 'कांग्रेस' है । किताबतकी दृष्टिसे स्वराज्य' सबसे अच्छा है। 'इंडिपेंडेंट' की छाप साफ नहीं है। या तो रोनिओ या फिर साइक्लोपर ट्रेसिंग खराब होती होगी। तीनों पत्रोंको स्वयंसेवकों या वेतनपर काम करनेवाले खास कार्यकर्त्ताओंको प्रशिक्षण देना होगा, जिससे कि वे ऐसी प्रतियाँ निकाल सकें जो छपे कागजकी तरह आसानीसे पढ़ी जा सकें। साथ ही उन्हें संक्षिप्त अभि- व्यक्तिकी शैली भी विकसित करनी होगी। ये तीनों पत्र चुस्त शैलीमें लिखे जाते हैं, फिर भी मुझे विश्वास है कि विचारको अस्पष्ट किये बिना संक्षिप्तीकरणकी कलाको अभी और आगे बढ़ाया जा सकता है। उद्देश्य यह होना चाहिए कि विचार या तथ्यों के रूपमें पाठकको कुछ ऐसा दिया जाये जो उसे और कहीं न मिल सकता हो । व्यवस्था- पकोंको प्रत्येक प्रति देखनी चाहिए और जिन-जिनपर छाप हलकी हो और पढ़ी न जा सके उन सबको नष्ट कर देना चाहिए, जैसा कि मुद्रक भी करते हैं। इन सराहनीय