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टिप्पणियाँ
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खबर मिली है कि मेरे पिताके साथ अमानुषिक व्यवहार किया जा रहा है । वे घातक नमूनिया रोगसे पीड़ित हैं। बीमारीके बावजूद उनसे चक्की चलवाई गई। इस तरह दबाये जानेपर ही उन्होंने माफीनामा दिया था; लेकिन स्थितिका भान होते ही उन्होंने फौरन उसे वापस ले लिया । आजकल उन्हें अंडे खाने और शराब पीनेके लिए मजबूर किया जा रहा है। उनका वजन कम हो गया है।

मैं नहीं जानता कि यह खबर कहाँतक सच है । पुत्र अपने पितासे मिल नहीं सका है । जो खबर उसे मिली है अगर वह सच है तो यह साफ-साफ यातना देनेका मामला है । कोई भी यह देख सकता है कि वे इतने कमजोर हैं कि उन्हें चक्की चलानेका काम नहीं दिया जा सकता। किसी रोगीको ब्रांडी या अण्डे लेने के लिए मजबूर करना धर्मके विरुद्ध एक अपराध है । दक्षिण आफ्रिकाके रेवाशंकर सोढा नामक एक नौजवान सत्याग्रहीकी बात मैं जानता हूँ । उसके हलकके नीचे जबरदस्ती अंडे उतारे गये । उसने उस द्रवको जबरदस्ती पिलाये जानेके बाद तुरन्त ही उलटी कर दी, और इस तरह अपने उत्पीड़कोंको परास्त कर दिया। इस तरहके दृढ़ संकल्पके आगे उस अत्याचारको दोहराने की फिर अधिकारियोंकी हिम्मत नहीं हुई। यह बतानेकी आवश्यकता नहीं कि वह बहादुर नौजवान अंडे न खानेपर भी ठीक हो गया और आज वह पूरी तरह स्वस्थ और सुखी है । डाक्टरों द्वारा सुझाये गये भोजनको अस्वीकार करनेके औचित्य के बारेमें मतभेद हो सकता है । परन्तु हम यहाँ इसके चिकित्सा-सम्बन्धी पहलूपर विचार नहीं कर रहे हैं। मेरे विचारसे तो मनुष्य जिस चीजको अपना धार्मिक विश्वास मानता है, उसकी कीमतपर रोगमुक्त होनेसे इनकार करनेका उसे पूरा अधिकार है, विशेष- कर जब वह जेलमें हो ।

मदरलैंड' मुकाबलेके लिए तैयार

मौलवी मजहरुल हकके[१]'मदरलैंड' से जमानत दाखिल करनेके लिए कहा गया है। बिहार सरकार के लिए वह पत्र जरूरत से ज्यादा स्वतन्त्र सिद्ध हुआ है। उसने बड़ी बेरहमी से उसके कुकर्मोंका भण्डा-फोड़ किया है। अपने विचारोंको उसने खुलेआम रखनेकी हिम्मत दिखाई है। स्पष्टवादिताका मुँह बन्द करना ही चाहिए। सम्पादकने गर्व के साथ जमानत दाखिल करनेसे इनकार कर दिया है और यह घोषणा की है कि वे अपने पत्रको हस्तलिखित रूपमें निकालेंगे । वे प्रतिदिन अपने विचारोंको अभिव्यक्ति देते हुए जो कुछ लिखा करेंगे उसकी नकलें तैयार करनेके लिए उन्हें बहुत सारे स्वयं- सेवकोंकी सहायता मिलनी चाहिए। इस तरह पाठकगण समाचारों और विचारोंके संक्षिप्तीकरणका महत्त्व शायद अधिक समझ पायेंगे • भले ही कारण सिर्फ इतना ही

  1. १८६६-१९३०; बिहारके राष्ट्रवादी नेता; मुस्लिम लीगके संस्थापकोंमें से एक और बादमें उसके अध्यक्ष; · चम्पारन सत्याग्रह तथा असहयोग आन्दोलनमें गांधीजीकी मदद की।