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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


होता है । अली-बन्धुओंके रुखके बारेमें सभी सन्देह इससे दूर हो जाते हैं। मैं जानता हूँ कि उन्हें फुसलाया नहीं जा सकता। उनका रवैया बहुत ही उचित है, पर ईश्वरको धन्यवाद है कि वे दृढ़ भी हैं। अपनी कमजोरी के कारण वे इंच भर भी झुकेंगे नहीं । पर वे हर युक्तिसंगत चीजके लिए तैयार हो जायेंगे। खुदाका डर होनेसे वे अपने विपक्षियोंकी वास्तविक कठिनाइयोंको भी अच्छी तरह समझ सकते हैं । यदि विपक्षी पूर्णतया सच्चे हों और सही बात करने व गलतीको मान लेनेके लिए तैयार रहें तो किसी भी विपक्षीको उनसे डरने या उनपर अविश्वास करनेकी जरूरत नहीं है । लेकिन यह सोचना कि अली-बन्धुओंकी तसल्ली किये बिना मुसलमानोंकी तसल्ली की जा सकती है, भारतमें इस्लामकी उपेक्षाका प्रयास होगा ।

मेरठमें आतंक

जिला खिलाफत समिति के मन्त्री, काजी बशीरुद्दीन अहमद लिखते हैं: [१]

इसे तथा इससे अगले पत्रको उद्धृत करते हुए मुझे हार्दिक दुःख हो रहा है । यह देखकर कि मानव-स्वभाव इतना नीचे गिर सकता है, मुझे अपमान और लज्जा- का अनुभव हो रहा है। पत्र भेजनेवालों के बयानोंकी सचाईपर शक करनेका तो कोई कारण ही नहीं है ।

इन तमाम बहादुर साथियोंको मेरी यही सलाह है कि अहिंसाकी अपनी प्रतिज्ञा- पर दृढ़ रहो; अत्याचारियोंको क्षमा करते रहो। जाहिर है कि वे पागल हैं। वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं। गालियोंकी परवाह मत करो। जो गालियाँ देता है, वे उसीको दूषित करती हैं। जो सुनना नहीं चाहता उसका वे कुछ नहीं बिगाड़तीं । मारपीटसे तो हमारे जिस्मको चोट लगती है, लेकिन यदि हम उन्हें बिना क्रोधके बहादुरीसे झेल सकें तो गालियोंसे हमें लाभ ही होगा। पुलिसका कानूनके खिलाफ यह पौरुषविहीन आचरण इस प्रणालीकी भ्रष्टताका एक और उदाहरण है । इस प्रणालीके अन्तर्गत बर्बरताका पोषण किया गया है और मानव-स्वभावको पतनके गर्तमें ढकेल ________________

काम करनेसे इनकार कर सकते हैं, और हमारे हाथमें यही एकमात्र हथियार है ।...हमें जेलसे बाहर और जेलके भीतर भी इस सरकारको यह एहसास करा देना चाहिए कि वह हमें अपनी इच्छा विरुद्ध कोई काम करनेके लिए किसी भी तरह मजबूर नहीं कर सकती ।...जेलोंमें कुछ बहुत ही अपमानजनक रीति-रिवाज जारी हैं । हमें उनका पालन करनेसे इनकार कर देना चाहिए । वे रीति-रिवाज इस प्रकार हैं :

(क) हर रोज शामको तमाम कपड़े उतार लिये जाते हैं और हमें मामूली-सा अँगोछा पहनकर यह दिखाना पड़ता है कि अपनी रानोंके बीच हमने कुछ छिपा नहीं रखा है ।

(ख) नेल-परेड के समय लोगोंसे ऐसे काम कराये जाते हैं जो आत्मसम्मानका हनन करनेवाले होते हैं और अनुशासनके नामपर वस्तुतः अपमान ही होते हैं ।

(ग) शौच करते समय आसपास कई लोग रहते हैं और एक वार्डर कैदीपर निगाह रखता है ।

(घ) हररोज पाँचों बार नमाज पढ़ते समय खुले आम अजान देनी चाहिए ।...

  1. उनका पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उसमें मेरठमें सविनय अवज्ञाकी हलचल और पुलिसके अमानुषिक व्यवहारका वर्णन किया गया था ।