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'१२५. पत्र : वी० ए० सुन्दरम्को

बारडोली
१ फरवरी [१९२२][१]

मेरे प्यारे सुन्दरम्

बड़ी खुशीकी बात है कि मौन रखना तुमको अनुकूल पड़ा और अब तुम फिर- से मौन शुरू कर रहे हो ।

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ३१९०) की फोटो - नकलसे ।

'१२६. टिप्पणियाँ

बड़े भाईका पत्र

मौलाना शौकत अली द्वारा अपने पुत्रको लिखा निम्नलिखित पत्र[२] पाठकोंको अच्छा लगेगा :

मैं नहीं समझता कि मुझे इस पत्र में अतिरिक्त हिदायतोंके रूपमें कुछ और जोड़ना है । इसमें हिदायतें तो दी ही गई हैं, इसके अलावा एक और भी उद्देश्य इससे सिद्ध

(१) उन्हें सबके प्रति शिष्टतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए; और उनके साथी कैदी तथा घृणित कार्य करनेके लिए मजबूर किये जानेवाले कमजोर और असहाय हिन्दुस्तानी वार्डर तो ऐसे व्यवहारके विशेष पात्र हैं । हमें उनको इस अधोगतिसे ऊपर उठाना है, उनके भीतर सच्चा साहस भरना है और उन्हें देशभक्ति तथा अनुशासनकी शिक्षा देनी है । इसके साथ-साथ हमें अपने-आपपर और अपनी कष्ट सहनकी क्षमतापर पूरा भरोसा होना चाहिए ।

(२)हमें स्वच्छ भोजन, स्वच्छ वस्त्र और साफ-सुथरे विस्तरकी मांग अवश्य करनी चाहिए। लेकिन मेरे विचारसे यह बात बहुत कम महत्त्वकी है। अधिक महत्त्वकी बातें आगे बता रहा हूँ ।

(३) अपने स्वास्थ्यको हानि पहुँचाये बिना हम जितना काम कर सकते हैं उतना हमें अवश्य करना चाहिए। यदि हमसे अपनी शक्ति और परिस्थितियोंसे अधिक काम करनेको कहा जाये तो हम जवाब में


२२-२१

  1. देखिए " पत्र : वी० ए० सुन्दरम्को”, १-२-१९२२ के पूर्व, और ३-२-१९२२ ।
  2. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया जा रहा है। मौलाना साहबने पह पत्र कराची जेलसे लिखा था और इसमें वहाँकी अवस्थाका वर्णन करते हुए बताया था कि जो बातें अपमानजनक हैं, उनका विरोध करनेके लिए वे कृतसंकल्प हैं । जेल जानेवाले कार्यकर्ताओंको उन्होंने निम्नलिखित हिदायतें दे देनेका सुझाव दिया था :