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सम्पूर्णं गांधी वाङ्मय

लेकिन भारत सरकार के प्रधानके रूपमें आपसे मैं विनयपूर्वक अनुरोध करता हूँ कि बारडोलीकी जनता द्वारा वस्तुतः सविनय अवज्ञा प्रारम्भ करनेसे पूर्व आप इस नीतिपर एक बार अन्तिम रूपसे विचार करें और ऐसे सभी असहयोगी कैदियोंको छोड़ दें जिन्हें अहिंसक गतिविधियोंके कारण ही या तो सजा दी जा चुकी है, या जिनपर मुकदमे चल रहे हैं। साथ ही आपसे यह अनुरोध भी है कि वर्तमान नीतिके स्थानपर स्पष्ट शब्दोंमें एक नई नीति की घोषणा करें। वह नई नीति यह हो कि खिलाफत, पंजाब अथवा स्वराज्य के प्रश्नपर या किसी अन्य उद्देश्यसे देशमें जो भी अहिंसक हलचलें होंगी, उनमें किसी प्रकारका हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा । ये हलचलें यदि दण्ड संहिता अथवा दण्ड प्रक्रिया संहिताके दमनात्मक दण्डोंके अन्तर्गत आयेंगी तब भी उनमें कोई दखल नहीं दिया जायेगा, बशर्ते कि वे पूर्ण रूपसे अहिंसात्मक हों । एक अनुरोध यह भी है कि अखबारोंको समस्त प्रशासनिक नियन्त्रणसे मुक्त कर दें, और उनपर हालमें जो भी जुर्माने किये गये हों और उनकी जो भी जमानतें जब्त की गई हों, सब वापस दे दें । परमश्रेष्ठसे मैं कोई असाधारण काम करनेका अनुरोध नहीं कर रहा हूँ; यह सब आज सभ्य सरकार द्वारा शासित समझे जानेवाले हर देशमें हो रहा है । यदि इस ज्ञापन पत्रके प्रकाशनके सात दिनोंके अन्दर आप आवश्यक घोषणा कर सकें, तो मैं लोगोंको ऐसी सलाह देने को तैयार हूँ कि जबतक कैदी कार्यकर्ता अपनी रिहाईके बाद सम्पूर्ण परिस्थितिपर विचार न कर लें और स्थितिको नये सिरे से देख-परख न लें तबतक आक्रामक सविनय अवज्ञा प्रारम्भ न की जाये । यदि सरकार यह घोषणा कर देती है तो मैं मानूंगा कि वह सचमुच लोकमतका आदर करना चाहती है; और उस हालत में मैं देशको निस्संकोच भावसे ऐसी सलाह दूँगा कि वह लोकमतको और भी तैयार करें और भरोसा रखे कि उसकी बदौलत देशकी वे माँगें पूरी हो जायेंगी, जिनमें किसी तरहका परिवर्तन नहीं किया जा सकता । यदि यह सब हो जाये तो आक्रामक सविनय अवज्ञा फिर तभी की जायेगी, जब सरकार अपनी कठोर अ-हस्तक्षेपकी नीतिका परित्याग कर देगी या भारतकी जनताका जबरदस्त बहुमत जो कुछ चाहता हो उसे स्वीकार न करेगी।

आपका विश्वस्त सेवक और मित्र,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ९-२-१९२२