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पत्र : वाइसरायको

कर्त्तव्य इनकी रक्षा करना ही है। इन्हीं परिस्थितियोंमें परमश्रेष्ठको गोलमेज परिषद् बुलाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्यसे मालवीय सम्मेलनका आयोजन हुआ। असहयोगी लोग उस सम्मेलनसे कोई सरोकार नहीं रखना चाहते थे; क्योंकि एक ओर तो सरकारके वर्तमान रुखको देखते हुए उन्हें कोई आशा नहीं थी और दूसरी ओर वे यह देख रहे थे कि हिंसात्मक तत्त्वोंपर पूरी तरह नियन्त्रण रखनेकी दृष्टिसे देश अभी तैयार नहीं है । लेकिन मैं इस बात के लिए बहुत उत्सुक था कि संघर्ष छिड़नेपर जनता - को जो कष्ट झेलना पड़ेगा, उसे जहाँतक टालना सम्भव हो, टाला जाये । सो मैंने कार्य समितिको बेहिचक यह सलाह दी कि परिषद्की सिफारिशें स्वीकार कर ली जायें ।[१]आपके कलकत्ते के भाषण और कुछ दूसरे सूत्रोंसे मैंने अनुमान लगाया था कि गोलमेज परिषद् बुलाने के लिए आप किन बातोंकी अपेक्षा रखते हैं; और मालवीय सम्मेलनकी शर्ते मुझे आपकी अपेक्षाओंके सर्वथा अनुरूप लगीं। फिर भी आपने प्रस्ताव- पर तनिक भी विचार किये बिना उसे अस्वीकार कर दिया ।

इन परिस्थितियोंमें, देशके सामने इसके अलावा और कोई चारा नहीं रह गया है कि अपनी माँगोंको, जिनमें वाणी, सभा-संगठन और अखबारोंकी स्वतन्त्रता भी शामिल है, स्वीकार कराने के लिए वह कोई अहिंसात्मक तरीका अपनाकर संघर्ष छेड़ दे। मेरी नम्र सम्मतिमें, हालकी घटनाएँ इस बातकी द्योतक हैं कि अली- बन्धुओंकी उदात्त, पुरुषोचित तथा बिना शर्त क्षमा-याचनाके[२] समय परमश्रेष्ठने जो सभ्य नीति निर्धारित की थी, उसका परित्याग कर दिया गया है । लगता है, अब यह नीति छोड़ दी गई है कि जबतक असहयोग आन्दोलन वाणी और कर्मसे अहिंसात्मक तरीकेसे चलाया जा रहा है, तबतक भारत सरकारको उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। यदि सरकार तटस्थताकी नीति बरतती रहती और लोकमतको परिपक्व होकर प्रभावकारी रूप ग्रहण करने देती तो आज लोगोंको ऐसी सलाह दी जा सकती थी कि जबतक कांग्रेस देशके हिंसात्मक तत्त्वोंपर पूरा नियन्त्रण नहीं पा लेती और अपने करोड़ों अनुयायियोंको और भी अनुशासनबद्ध नहीं कर देती तबतक आक्रामक सविनय अवज्ञा न छेड़ी जाये । किन्तु इस अवैध दमन कार्य (जिसका इस अभागे देशमें एक तरहसे कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता) के कारण सामूहिक सविनय अवज्ञा तत्काल प्रारम्भ कर देना एक आवश्यक कर्त्तव्य हो गया है। कांग्रेसकी कार्य समितिने तय किया है कि यह आन्दोलन समय-समयपर चुने जानेवाले कुछ विशेष क्षेत्रोंमें ही किया जाये, और फिलहाल तो सिर्फ बारडोलीमें ही करनेका निश्चय किया गया है। वैसे मैं चाहूँ तो, मुझे जो अधिकार दिया गया है उसके अधीन, मद्रास अहाते गुण्टूर जिलेके सौ गाँवोंके एक समूहमें तत्काल सविनय अवज्ञा प्रारम्भ करनेकी अनुमति दे सकता हूँ, बशर्ते कि वहाँके लोग उसके लिए आवश्यक शर्तोंका कड़ाईसे पालन कर सकते हों। वे शर्तें हैं अहिंसा, विभिन्न वर्गों एवं जातियोंके बीच एकता, हाथकते सूतसे खादी तैयार करना और उसीका उपयोग करना तथा अस्पृश्यताका निवारण ।

  1. देखिए “ कार्य समितिका प्रस्ताव ", १७-१-१९२२ ।
  2. देखिए खण्ड २०, पृष्ठ ९२ ।