पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/३३८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुत-से गुजराती भी ऐसा ही चाहें। मैं कुछ दिनोंसे ईश्वरसे यही प्रार्थना कर रहा हूँ कि हे ईश्वर ! तू मुझे इस सरकार के हाथसे मौत देना ।

भारतके लोग देशके भिन्न-भिन्न प्रान्तोंमें जो कष्ट भोग रहे हैं मेरे लिए उनको सुनना और सहन करना कठिन हो गया है। किसीका माल असबाब लूटा जाता है तो किसीको बेंत लगाये जाते हैं। सरकार लाठियाँ चलाकर सभाओंको भंग कर रही है । यह सब कैसे सहन किया जा सकता है ? इन सब अत्याचारोंको रोकनेका उपाय जेल जाना नहीं है । इनको रोकनेका उपाय तो जलियाँवाला बागकी तरह गोलियाँ खाकर मरना है । और मैं यह चाहता हूँ कि यदि सरकारके ये सब उपद्रव तुरन्त बन्द न हों तो हम गुजरातमें कुछ जगह जलियाँवाला बागकी पुनरावृत्ति करें ।

किन्तु इन दोनोंमें एक बड़ा भेद होना चाहिए। लोग जलियाँवाला बागमें तो सैर करने गये थे । उनको यह खयाल भी न था कि वहाँ उन्हें गोलियाँ खानी पड़ेंगी। उनकी इच्छा गोलियाँ खानेकी नहीं थी । यदि उन्हें यह पता होता कि उन्हें गोलियाँ खानी पड़ेंगी तो कदाचित् वहाँ कोई जाता ही नहीं । किन्तु अपने सम्बन्धमें तो मैं यह चाहता हूँ कि हम लोग इच्छापूर्वक गोली खायें। भले ही कोई जनरल डायर अपने सिपाहियोंको लेकर हमारे सामने खड़ा हो जाये और चेतावनी दिये बगैर ही हमारे ऊपर गोली चलाना शुरू कर दे तो भी हम परवाह न करें। ईश्वरसे मेरी प्रार्थना है कि जिस समय ऐसा हो उस समय भी मैं इसी तरह प्रफुल्लित मनसे बोल रहा होऊँ और आप लोग भी जैसे इस समय शान्त होकर बैठे हैं, गोलियोंकी वर्षा के समय भी वैसे ही शान्त होकर बैठे रह सकें । उस समय आपके कान मेरी तरफ हों और आपकी पीठ मेरी तरफ हो, किन्तु आपकी छाती और आपकी आँखें गोलियोंकी तरफ हों और आप उन गोलियोंका स्वागत करते हों। गुजरातके लोगोंके लिए ऐसी इच्छा करना ही योग्य है। गुजरातने बातें बहुत की हैं, प्रस्ताव भी बहुत स्वीकार किये हैं; किन्तु जिस समय समस्त भारत कष्ट सहन कर रहा है उस समय हम तो कोई भी कष्ट सहन नहीं कर रहे हैं। मैं जानता हूँ इसका अर्थ यह नहीं है कि हम अपने कर्त्तव्योंका पालन करने में दूसरोंसे पीछे रह गये हैं । हम जेलमें इसलिए नहीं हैं कि हमें बम्बई सरकार जेलमें ले नहीं जाती। मुझे आशा है कि इस स्थितिका अर्थ यह है कि हमारे भाग्यमें केवल जेल जाना नहीं है, बल्कि गोलियाँ खाना है ।

यदि हमारे मनमें इस तरहकी इच्छा सदा न रहती हो तो हमारे मिथ्याभिमानी हो जानेका भय है । इसके अतिरिक्त इस तरहकी इच्छा होने के साथ-साथ हमारी पवित्रता भी दिन-प्रतिदिन बढ़नी चाहिए। हिन्दुओं और मुसलमानोंके मनमें एक-दूसरेके प्रति जो द्वेष है वह दूर होना चाहिए। अभी तो हम एक-दूसरे से डरते हैं, एक-दूसरेका अविश्वास करते हैं। अभी पारसियों और ईसाइयोंको हिन्दुओं और मुसलमानोंका डर है । यद्यपि सूरतके लोगोंने बहुत कार्य किया है तथापि अभी उन्हें बहुत कुछ करना है। अभी तो सूरतकी स्त्रियों और पुरुषोंको सुख-चैन चाहिए। उन्हें चरखा चलाने में आलस्य लगता है । अभी उन्हें रेशमी और बारीक विदेशी अथवा देशी कारखानोंके कपड़ोंसे बहुत मोह है । यदि कोई खादीका कुर्ता और टोपी पहननेके लिए तैयार है