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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह सम्मेलन आशा करता है कि पूर्वोक्त बलिदानके लिए बारडोली ताल्लुकेको ही यह सौभाग्य सबसे पहले प्राप्त होगा और इस प्रस्तावके द्वारा यह सम्मेलन कार्य समितिको सूचित करता है कि यदि कार्य समिति इसके विपरीत फैसला न करे और यदि प्रस्तावित गोलमेज सम्मेलनकी आयोजना न हो तो यह ताल्लुका श्री गांधी तथा इस सम्मेलनके अध्यक्षकी सम्मति और संकेत के अनुसार तुरन्त सामूहिक सविनय अवज्ञा शुरू कर देगा ।

यह सम्मेलन इस बातकी सिफारिश करता है कि इस ताल्लुकेके जो लोग कांग्रेस द्वारा निर्धारित सामूहिक सविनय अवज्ञाकी शर्तोंका पालन करनेको राजी और तैयार हों वे जबतक दूसरी सूचना न मिले तबतक सरकारी लगान तथा दूसरे कर अदा न करें । कौन जानता है क्या होगा ?

कौन जानता है कि बारडोली के नर-नारी, दमनके लिए सरकार जो कार्रवाइयाँ कर सकती है, उनका मुकाबला कहाँतक कर सकेंगे ? यह तो केवल ईश्वर ही जानता है । उसीके नामपर इस युद्धका बीड़ा उठाया गया है । उसे इसका वारा-न्यारा कर ही देना है ।

सरकार अबतक बड़े ही आदर्श ढंगसे पेश आ रही है । वह इस सम्मेलनको बन्द कर सकती थी । पर उसने ऐसा नहीं किया। वह कार्यकर्त्ताओंको भी जानती है । बहुत पहले ही वह उन्हें वहाँसे हटा सकती थी। पर उसने यह भी नहीं किया। उसने लोगोंकी कार्रवाइयोंमें दखल नहीं दिया। उसने उन्हें हर तरहकी तैयारियाँ करने दीं । सरकार के इस व्यवहारको देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। उसकी यह रीति प्रशंसनीय है । यह लेख लिखते समयतक दोनों पक्ष के लोग प्राचीन शूरवीर योद्धाओंकी तरह परस्पर व्यवहार कर रहे हैं । यह तो शान्ति-युद्ध है । इसमें इससे भिन्न व्यवहार होना भी नहीं चाहिए। यदि यह युद्ध इसी रीति से जारी रहा तो इसका अन्त एक ही तरहसे हो सकता है। विजय उसीकी होगी जिसके पक्षमें बारडोलीके ८५,००० नर-नारी होंगे ।

कार्य-समितिकी बैठक होनेवाली है और वह बारडोलीके इस निर्णयपर अपना फैसला देगी। वाइसरायको अब भी मौका है और एक और मौका भी उन्हें दिया जायेगा। जल्दबाजीका, तैयारी या विचार न करनेका, अशिष्टता और असभ्यताका इलजाम बारडोली के लोगोंपर लगाना किसी तरह मुमकिन नहीं ।

इसलिए—

प्रभो, में घोर तिमिरसे घिरा हूँ, अपनी कृपाकी ज्योति जलाओ;
मुझे राह दिखओ, प्रभो ! मुझे ले चलो;
रात बहुत अँधेरी है; मैं अपने घरसे दूर, बहुत दूर हूँ;
इसलिए प्रभो ! मुझे राह दिखाओ ।
[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया,२-२-१९२२