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बारडोलीका निर्णय

रिवाजको एकदम तोड़ देना कठिन है । मैंने अपना आशय उन्हें खूब स्पष्ट करके समझाया; लेकिन उपस्थित जनसमुदाय तो इस विषयमें निर्णय कर ही चुका था ।

इस बड़ी सभासे पहले मैं कोई पचास सच्चे कार्यकर्त्ताओंसे मिला था । इस मुलाकात के पहले विट्ठलभाई पटेल, कुछ कार्यकर्त्ताओं तथा मैंने मशविरा करके तय किया था कि ऐसा प्रस्ताव पास किया जाये कि पन्द्रह दिनोंतक निर्णय स्थगित रखा जाये, जिससे उस अवधि में स्वदेशीकी तैयारी और भी पूरी तरह हो जाये तथा साठों राष्ट्रीय शालाओंमें अस्पृश्य बच्चोंको भरती करके अस्पृश्यता निवारणको एक ठोस रूप दे दिया जाये। लेकिन बारडोलीके उन बहादुर और सच्चे उत्साही लोगोंने निर्णयको स्थगित करना पसन्द न किया । उन्हें विश्वास था कि पचास फी सदीसे भी अधिक हिन्दू लोग छुआछूत के सम्बन्धमें बिलकुल तैयार हैं और इस बातका भी यकीन था कि अब आगे जितनी जरूरत होगी उतना खद्दर वे स्वयं तैयार कर सकेंगे । वे तो सरकारके साथ आखिरी फैसला करनेपर तुले हुए थे । श्री विट्ठलभाई पटेलने जितने एतराज उठाये उन सबको वे अस्वीकार करते गये। सफेद दाढ़ीवाले और सर्वदा प्रसन्नमुख रहनेवाले वृद्ध अब्बास तैयबजीने उन्हें सावधान किया। लेकिन वे अपने निश्चयसे एक अंगुल भी हटना नहीं चाहते थे । फलस्वरूप नीचे लिखा प्रस्ताव[१]एकमत से स्वीकार कर लिया गया :

सामूहिक सविनय अवज्ञा शुरू करनेके लिए आवश्यक शर्तोंको अच्छी तरह सोच-समझ लेनेके बाद, बारडोली ताल्लुकेके निवासियोंका यह सम्मेलन निश्चय करता है कि यह ताल्लुका सामूहिक सविनय अवज्ञाके लिए तैयार है ।

इस सम्मेलनकी राय है कि :

(क) भारतके कष्टोंको दूर करने के लिए हिन्दुओं, मुसलमानों, पारसियों, ईसाइयों तथा भारतकी दूसरी जातियोंमें एकता स्थापित करना बिलकुल आवश्यक है ।
(ख) इन कष्टोंको दूर करनेके लिए अहिंसा, धैर्य और सहनशीलता ही एकमात्र उपाय है ।
(ग) हर एक घरमें चरखा चलाया जाना और हर व्यक्तिका दूसरे कपड़ोंको छोड़कर सिर्फ हाथकता और हाथबुना कपड़ा ही पहनना भारतकी स्वतन्त्रताके लिए अनिवार्य है ।

है ।

(घ) हिन्दुओं द्वारा छुआछूत पूर्णतः दूर किये बिना स्वराज्य असम्भव
(ङ) जनताकी प्रगति के लिए तथा स्वतन्त्रताकी प्राप्ति के लिए, तमाम चल और अचल सम्पत्ति के बलिदान के लिए, जेल जाने तथा आवश्यकता आ पड़े तो अपने प्राणोंतक को न्यौछावर कर देनेके लिए तैयार रहना परम आवश्यक है ।
 
  1. मूल प्रस्ताव गुजरातीमें था ।