पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/३३४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

nbsp;

११९. बारडोलीका निर्णय

३० जनवरी, १९२२

बारडोलीने बड़ा गम्भीर और महत्त्वपूर्ण निर्णय किया है। उसने अपना रास्ता अन्तिम रूपसे चुन लिया है और अब उससे पीछे नहीं हटा जा सकता। ताल्लुकेके प्रतिनिधियोंका एक सम्मेलन हुआ था।[१] अध्यक्ष विट्ठलभाई पटेलके भाषण में चेतावनीका स्वर बहुत स्पष्ट और प्रभावपूर्ण था। उन्होंने जो कुछ कहा, बिना किसी दुराव-छिपावके साफ शब्दोंमें कहा। ४,००० खद्दरधारी प्रतिनिधियोंका श्रोतृसमूह वहाँ उपस्थित था। पाँच सौ स्त्रियाँ भी थीं। स्त्रियों में भी अधिकांशने खद्दर ही पहन रखा था। जिस विषयको लेकर सम्मेलन हुआ था, उसमें उनकी गहरी रुचि थी; और इस विशिष्ट श्रोतृसमुदायको देखकर कौतूहल पैदा होता था। सभी स्त्री-पुरुष बड़े गम्भीर और जिम्मेदार ढंगके लोग थे; सभी के मनमें एक बड़ा सवाल मौजूद था और उन्हें यह भान था कि उसके साथ उनका हिताहित जुड़ा हुआ है।

विट्ठलभाईके बाद मेरा भाषण[२] हुआ। मैंने कांग्रेस द्वारा निर्धारित सामूहिक सविनय अवज्ञाकी एक-एक शर्त लोगोंको समझाई। मैंने हर शर्तपर अलग-अलग श्रोताओंकी राय ली। हिन्दू-मुस्लिम-पारसी-ईसाई एकताके महत्त्व और अर्थको समझते थे। वे अहिंसाकी महत्ता और उसके सत्यको भी समझते थे। अस्पृश्यता निवारणका अर्थ उनके सामने स्पष्ट था; वे अस्पृश्य बालकोंको राष्ट्रीय शालाओंमें भरती करनेके लिए ही नहीं बल्कि उन्हें उनमें भरती होनेके लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करनेको भी तैयार थे। गाँवके कुँओंसे अस्पृश्योंके पानी भरनेपर उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी। उन्हें मालूम था कि उन्हें अस्पृश्य रोगियोंकी सेवा भी उसी तरह करनी है जिस तरह वे अपने बीमार पड़ोसियोंकी सेवा करते हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि जबतक वे मेरे बताये गये तरीकेसे अपने-आपको पवित्र और निष्कलुष नहीं बना लेते तबतक लगान-बन्दी तथा दूसरे ढंगकी सविनय अवज्ञा करनेके विशेष अधिकारका प्रयोग नहीं कर सकते। उन्हें यह भी मालूम था कि उन्हें उद्यमी बनना है और अपनी जरूरतका सूत खुद ही कातना है तथा अपनी जरूरतका खद्दर भी खुद ही बुनना है। और अन्तमें, वे अपनी चल सम्पत्ति, अपने मवेशियों और अपनी जमीनकी जब्तीको भी झेलने को तैयार थे। वे कारावास और आवश्यकता पड़नेपर मृत्युको भी स्वीकार करने को तैयार थे, और मनमें किसी प्रकारका क्षोभ या क्रोधका भाव लाये बिना यह सब करने को तैयार थे।

हाँ, छुआछूत के सवालपर एक बूढ़े आदमीने अपना मतभेद प्रकट किया था। उन्होंने कहा कि सिद्धान्तके रूपमें तो आपका कहना ठीक है; पर व्यवहारमें इस

  1. २९ जनवरी, १९२२ को आयोजित।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।