पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/३३१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०७
भाषण: बारडोली ताल्लुका सम्मेलनमें

दुबला[१] जाति अथवा ऐसी ही अन्य जातियोंके प्रति रखना चाहिए वैसा ही अन्त्यजोंके प्रति भी रखना चाहिए। समानताका बरताव करना है, इसका यह मतलब नहीं कि आप दुबला आदि लोगोंको जैसा कष्ट देते हैं वैसा ही अन्त्यजोंको देने लगें; मतलब यह है कि जैसे हम दुबला जातिके बच्चोंको अपने घरों और शालाओंमें आने और बैठने देते हैं वैसे ही अन्त्यज बालकोंको भी आने और बैठने दें और यदि दुबले हमारे कुँओंसे पानी भर सकते हैं तो अन्त्यज भी भर सकें। जिस बातको हम धर्म मानते हैं उसके पालनमें हमें कंजूसी नहीं करनी चाहिए; हमें उसमें उदारता ही दिखानी चाहिए। यहाँ जो लोग मौजूद हैं यदि उनमें से कोई यह मानते हों कि गांधी जैसे पागलका उपयोग करनेके लिए हम इस समय तो ढेढ़ोंसे मिलन-जुलने लगें, तो मैं कहता हूँ कि ऐसे लोग ईश्वरको, मुझे और आपको धोखा देंगे। यदि आपके मनमें ऐसा पाखण्ड होगा तो आप यह निश्चय मानें कि आप अन्त्यजोंके ही हाथों मरेंगे।

आप ऐसा न समझना कि मैं तो एक भ्रष्ट और सुधारवादी मनुष्य हूँ। मैं शुद्ध सनातनी हिन्दूके रूपमें यह मानता हूँ कि जैसी अस्पृश्यता इस समय बरती जा रही है हिन्दू धर्मशास्त्रोंमें वैसी अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं है। मैं शास्त्रार्थ नहीं करना चाहता। मैं तो शास्त्रोंको जिस रूपमें समझा हूँ उस रूपमें उनका दोहन करके आपके सम्मुख रखता हूँ। इस प्रकारकी अस्पृश्यताका आचरण करना अधर्म है। ऐसी अस्पृश्यताका पालन जो भी करेगा उससे यमराज अवश्य पूछेगा और उसे उसका फल भोगना पड़ेगा। उसके सम्मुख अज्ञानका बहाना भी नहीं चलेगा। हिन्दू धर्मशास्त्रोंमें अथवा अन्य धर्मोके धर्मशास्त्रोंमें ऐसा नहीं कहा गया है कि जो अज्ञानमें पाप करता है उसे उसका फल नहीं भोगना पड़ता। हाँ, इतना है कि उसे जान-बूझकर पापका आचरण करनेवाले मनुष्यकी अपेक्षा कम फल भोगना पड़ता है। किन्तु अज्ञानमें पापका आचरण करनेवाले मनुष्यको भी अपने कर्मका फल तो भोगना ही पड़ता है। कर्मकी गति ही ऐसी अनोखी है। आप ऐसा न सोचें कि व्यावहारिक दृष्टिसे आज अन्त्यजोंका स्पर्श कर लेना ठीक है। यदि आप सचमुच यह मानते हों कि ऐसा करना धर्म नहीं है तो आप कह दें कि आप इसे धर्म नहीं मानते। मुझे इससे दुःख नहीं होगा। मैं फिर दूसरी जगह भीख मागूँगा और पूछूंगा कि इस शर्त पर सविनय अवज्ञा करनेके लिए कौन तैयार है? और यदि कोई तैयार न होगा तो मैं अकेला ही सविनय अवज्ञा करूँगा।

शान्तिके सम्बन्धमें भी स्थितिको स्पष्ट करना आवश्यक है। मुसलमान और ‘गीता’ का पारायण करनेवाले विद्वान् मुझसे कहते हैं कि विशेष अवसरोंपर तलवारका उपयोग करना धर्मानुकूल है और स्वयं कृष्ण भगवान्ने अर्जुनको युद्ध करनेके लिए प्रेरित किया था। किन्तु मेरे लिए तो अहिंसा ही परम धर्म है। वह आपके लिए भले ही व्यवहार-धर्म हो। किन्तु अस्पृश्यताका निवारण तो सनातन धर्म ही है। अस्पृश्यता-निवारणका अर्थ यह नहीं है कि आप अन्त्यजोंके साथ खायें-पियें, अथवा बेटी-व्यवहार

  1. गुजरातकी एक पिछड़ी जाति।