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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह कहेंगे कि अब तो आप ही राज-काज चलायें। पर इस स्थितिसे तो मृत्यु ही अच्छी है। इस स्थितिमें मुझ जैसे लोग तो हिजरत कर जायेंगे अर्थात् देश छोड़कर चले जायेंगे। हिजरतका विधान इस्लाममें ही नहीं है। तुलसीदासजीने भी कहा है कि जहाँ असन्त बसते हों वहाँसे चले जाना चाहिए। वन्दना तो असन्तोंकी भी करनी है; पर सैकड़ों कोस दूरसे। हमारा यहाँ काम करना तभीतक सम्मानजनक होगा जबतक हम यहाँ रहकर स्वतन्त्रताका मन्त्र जप सकते हैं। किन्तु जब हमें यह लगे कि इस देशमें हमारा साथी तो कोई रहा नहीं, तब सभीको देश छोड़कर चले जानका अधिकार होगा।

भारतकी स्थितिको देखते हुए हमारे सम्मुख एकमात्र मार्ग, जिससे हमारा वाण सम्भव है, शान्तिका ही मार्ग है।

प्रस्ताव रखनेसे पूर्व इन सब बातोंका स्पष्टीकरण में इस कारण करता हूँ कि हममें से कोई भी मनुष्य बातको समझे-बूझे बिना हाथ न उठाये। हाथ उठानेसे स्वराज्य नहीं मिलेगा। स्वराज्य तो मिलेगा स्वयं अपने प्राण देनेसे, माल-मिल्कियत-को बर्बाद होने देने से तथा अपने बर्तन-भाँडे और ढोर-डंगर गँवानेसे।

जबतक सभी स्त्रियाँ सूत नहीं कातने लगतीं, जबतक सब पुरुष सूत नहीं कातेंगे और आलसमें वक्त खोयेंगे तो हम अवश्य मरेंगे। हमें मरना तो है; किन्तु ज्ञानपूर्वक और पवित्र होकर मरना है। इसके लिए तो हमारे हाथमें निरन्तर माला होनी चाहिए और सच्ची माला यही चरखेकी माला है। हमें अपने मनमें निरन्तर यही बात जपनी चाहिए कि भारत वस्त्रहीन है और हमें उसका तन ढकना है। जो लोग इस समय सूत कात रहे हैं वे प्रभुका कार्य कर रहे हैं। यदि आप सब लोग एक, दो या तीन घंटे रोज चरखा चलाने के लिए और बारडोलीकी खादी न मिलनेपर लँगोटी पहनकर रहने के लिए तैयार हों तभी आप इस प्रस्तावको स्वीकार करें।

आज सुबह श्री विट्ठलभाई और अन्य कई प्रतिनिधियोंसे मेरी बात हुई तो मुझे यह बताया गया कि अभी बारडोली तैयार नहीं है। इससे प्रकट होता है कि हम ईश्वरको धोखा नहीं दे रहे हैं। उसे तो कभी धोखा दिया नहीं जा सकता। मनुष्यको धोखा दिया जा सकता है। किन्तु हम न तो मनुष्यको धोखा देते हैं और न अपनी आत्माको। इसलिए मैंने इस समय यही निश्चय किया कि बारडोलीके तैयार होनेकी घोषणा पन्द्रह दिन बाद ही की जाये। किन्तु मैंने यह सोचा कि मैं ऐसा प्रस्ताव तैयार करने के पूर्व सभी गाँवोंके प्रतिनिधियोंसे मिल लूँ जिससे उन लोगोंको जो तैयार हैं, निराशा न हो। बारडोली तैयार नहीं है, यह उत्तर कार्यकर्त्ता स्वयंसेवकोंने दिया है और इससे उनकी सतर्कता प्रकट होती है। फिर मैं जब प्रतिनिधियोंसे मिला, तो जिन गाँवोंके प्रतिनिधि आये थे उनमें से पच्चीस गाँवोंके प्रतिनिधियोंने कहा कि वे तो आज ही पूरी तरह तैयार हैं। मैंने उनसे कहा कि उन्हें कल ही अन्त्यज बालकों को अपनी शालाओंमें ले आना होगा। मैंने उनसे कहा कि ‘गीता’ में पाँच वर्णोंका नहीं, चार ही वर्णोंका उल्लेख है। क्या आप इस पाँचवें वर्णको चार मूल वर्णोंमें खपाने के लिए तैयार हैं? इसका अर्थ इतना ही है कि आपको जैसा बरताव