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भाषण: बारडोली ताल्लुका सम्मेलनमें

 

आप यह न समझें कि सरकार आपके ऊपर बन्दूकके जोरसे राज्य कर रही है। ८५,००० की आबादीमें हुकूमतके चिह्नके रूपमें तो कुछ इने-गिने अफसर ही हैं। वे केवल आपकी सम्मतिसे, आपको फुसलाकर ही राज्य चलाते हैं। किन्तु जिस क्षण आप यह निश्चय कर लें कि आपको इन अफसरोंके नीचे नहीं रहना है, ज्यों ही आप इस निर्णयपर पहुँचेंगे कि यदि ये रहना चाहें तो हमारे नौकर बनकर भले ही रहें, त्यों ही आप ८५,००० लोग तो अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त कर ही सकते हैं। आप ऐसा कर सकते हैं, यह आशा लेकर ही मैं यहाँ आया हूँ। आपको स्वतन्त्रता प्राप्त करनेके लिए किसी भी अधिकारीको न तो मारनेकी जरूरत है और न गाली देनेकी। केवल उनको सहयोग देनेसे साफ ना कहने की जरूरत है। उनसे यह कहने की जरूरत है कि अब आप उनसे सहयोग करना नहीं चाहते।

लॉर्ड विलिंग्डनने एक बार एक मानपत्रके उत्तरमें यह कहा[१] था कि भारत के लोगोंको तो “ना” कहना आता ही नहीं। सभी लोग “हाँ, साहब”, “हाँ, हुजूर” यही कहना जानते हैं। अब जब उनके कहनेके अनुसार हम 'ना" कहना सीख गये और यह कहते हैं कि हमें आपके साथ सहयोग करनेकी जरूरत नहीं है, तब वे हमपर नाराज होते हैं। हम उनसे कहते हैं कि यदि आपको हमसे सम्बन्ध निभाना है तो वह सम्बन्ध मित्र रूपमें, सज्जनोचित और सभ्य व्यवहारका ही हो सकता है। किन्तु यदि आप हमारे स्वामी बनना चाहते हों तो आपके साथ हमें सहकार नहीं करना है। यह तो सहकार नहीं हुआ, इसका मतलब तो यह हुआ कि आप हमें गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं।

हमारी लड़ाईकी सफलताकी कुंजी हमारी एकता है। हिन्दुओं और मुसलमानोंकी एकताका अर्थ यह है कि हम पारसियों और ईसाइयोंकी रक्षा करें और उसका पदार्थपाठ यह है कि हम किसी भी सरकारी अधिकारीपर अत्याचार न करें, बल्कि सभीको मित्र बनाकर रखें। उन्हें मित्र बनाकर रखनेका अर्थ इतना ही है कि हम उनका अपमान न करें, तिरस्कार न करें, उनसे तू कहकर न बोलें और उनकी मानरक्षा करें। हम उनसे कहें, “आपसे हमारी कोई दुश्मनी नहीं है पर आपका राज्य हमें नहीं चाहिए; बस इसके सिवा हमारा आपका कोई झगड़ा नहीं है। आप असभ्यतासे हमारे गाँवमें किसीपर राज्य नहीं कर सकते।” अधिकारीके मनमें यह विश्वास होना चाहिए कि वह स्वयं और उसके बच्चे साथमें पिस्तौल रखे बिना आपके गाँव में किसी भी समय निर्भय होकर आ-जा सकते हैं।

आप इतनी बात समझ गये हैं, इसी विश्वासके साथ में यहाँ आया हूँ। यदि आप सच्चे दिलसे ऐसी अहिंसाका पालन न करते हों और पाखण्डी ही हों तो मैं आपके सम्मुख भविष्यवाणी करता हूँ कि हम एक महीने के भीतर-भीतर ही बाजी हार बैठेंगे। यदि हिन्दुओं और मुसलमानोंकी यह एकता ढोंग होगी और हमारे मनमें अविश्वास भरा होगा तो मुसलमानोंको अफगानोंकी सहायता लेनेकी बात सूझेगी और हिन्दुओंका मन जापानके पास जानेको होगा अथवा वे अन्तमें अंग्रेजोंके पास जाकर ही

  1. देखिए खण्ड १३, पृष्ठ २६३।
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