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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मनोंमें से अभी पूरा मैल नहीं गया है। अभी अल्पसंख्यक जातियोंमें अपनी सुरक्षाके सम्बन्धमें विश्वास पैदा नहीं हुआ है। अभी हिन्दुओं और मुसलमानोंकी मित्रताका भय पारसी, ईसाई और अन्य अल्पसंख्यक जातियोंके मनसे गया नहीं है। स्वराज्यका अर्थ ही यह है कि उसमें बहुमतकी सत्ता चले। किन्तु किसी बहुसंख्यक समुदायकी सत्ता बढ़े और उस बढ़ी हुई सत्ताका दुरुपयोग किया जाये यह तो स्वराज्य नहीं होगा; यह तो अत्याचार होगा, स्वेच्छाचार होगा। और यदि ऐसा हो तो उन स्वेच्छाचारियोंका तो नाश ही हो सकता है। भारतमें आज जो स्थिति है वह इससे बिलकुल उलटी है। आज करोड़ों लोगोंपर मुट्ठी भर लोगोंका स्वेच्छाचार चल रहा है। किन्तु इन अंग्रेजोंका स्वेच्छाचार एक हदतक सह्य हो गया है। मुट्ठी भर अंग्रेज जब अपने स्वेच्छाचारसे तीस करोड़ भारतीयोंपर अत्याचार करते हैं तब उसमें इन करोड़ों लोगोंका भाग भी होता है। यदि हमारे हाथमें सत्ता हो तो मुझे नहीं लगता कि हम भी छोटी और निर्बल जातियोंपर अंग्रेजोंके समान अत्याचार न करेंगे।

यदि मुट्ठी भर लोगोंको करोड़ों लोगोंपर राज्य करना हो तो या तो वह आतंक और अत्याचारके द्वारा किया जा सकता है या उन्हें फकीर बनकर रहते हुए जितना कुछ किया जा सके उतना करना होगा। किन्तु ऐसा फकीर बननेके लिए तो पर-हित बुद्धि और स्वार्थ-त्यागकी जरूरत है। यदि ये न हों तो आजकी तरह अन्याय करके ही बहुसंख्यक लोगोंके ऊपर शासन किया जा सकता है।

अंग्रेजी हुकूमत अब लोभ-लालचके वशीभूत हो गई है। वह लोभ-लालचके कारण ही यहाँ आई थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी लालचकी प्रेरणासे ही यहाँ आई थी। उसने यहाँ आकर देखा कि राज्यके बिना तो व्यापार चलाया नहीं जा सकता। उसने यहाँ सोने और चाँदीकी खानें देखीं। ये खानें थीं हमारे शरीर और उनपर पहने हुए वस्त्र। इस सोने-चांदीको लूटने के लिए इस हुकूमतने हमको नंगा कर दिया। हमें लालच दिखाकर, अत्याचार और अनेक प्रकारके अन्यायोंसे हमारे वस्त्रोंका अपहरण कर लिया।

सरकार बंगाल, चम्पारन और असममें हजारों बीघे जमीनपर कब्जा करके उसमें फसलें उगाती है।[१] किन्तु वहाँ मजदूर देखें तो मजदूर हम ही हैं। सारा व्यापार दबाव से अथवा लालच दिखाकर किया जाता है। इस प्रकार यह हुकूमत साम, दाम, दण्ड और भेदकी चारों नीतियोंका उपयोग करके हमारे ऊपर राज्य कर रही है; परन्तु इसमें उसका दोष निकालना तो नामर्दीकी निशानी है।

यदि इसी हुकूमतके पद-चिह्नोंपर चलकर बारडोली ताल्लुकेकी ८४,००० की आबादी में से ८१,००० हिन्दू और मुसलमान, शेष ३,००० पारसी और ईसाई भाइयों-पर अत्याचार करें और उन्हें परेशान करें तो हमें संसार क्या कहेगा? कृष्ण भगवान्‌ने स्वेच्छाचारी यादवोंको जैसा शाप दिया था वैसा ही शाप संसार हमें देगा और उससे हमारा नाश हो जायेगा।

यदि हमें अपने बलपर विश्वास हो गया हो तो राम-राज्यकी स्थापना करनेके लिए गोला-बारूद या तोपोंकी नहीं बल्कि जागृतिकी और ज्ञानकी जरूरत है।

  1. जूट, नील और चाथकी फसलें।