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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब और कोई चारा न रह जाये। यह तो उस कंजूसके समान आचरण करना होगा जो नाजायज तरीकेसे इकट्ठा किये गये अपने धनको तभी छोड़ता है, जब उसपर दबाव पड़ता है या वह यह देखता है कि उसे छोड़े बिना उसका काम नहीं चल सकता।

अस्पृश्यताके सम्बन्धमें मुझे यहाँ इतना इसलिए लिखना पड़ा है क्योंकि मुझे कई तार और पत्र भेजकर चेतावनी दी गई है कि आपको अस्पृश्यताके सम्बन्धमें कांग्रेसकी शर्तोंका पालन करने के जो आश्वासन दिये गये हैं, उनपर विश्वास न करें। वे मुझसे यह कहते हैं कि आन्ध्र के लोग अभी अस्पृश्यताको छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। मैं वहाँके नेताओंसे यह आग्रह करता हूँ कि वे पूरी सतर्कता बरतें। सही मार्गसे जरा भी विचलित होनेसे हमारे उद्देश्यकी इतनी भयंकर क्षति होगी जिसे कभी पूरा नहीं किया जा सकेगा। ईश्वर हमसे पवित्रतम बलिदानकी अपेक्षा रखता है। यह ईसाई धर्म तथा इस्लामके साथ-साथ हिन्दू धर्मकी भी परीक्षाका समय है। हिन्दू लोग यदि इस परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते तो वे ‘उपनिषदों’ में प्रतिपादित हिन्दू धर्मके झूठे प्रतिनिधि साबित होंगे, क्योंकि ‘उपनिषदों’ का हिन्दुत्व गुणके आधारपर प्राप्त अधिकारके अलावा और किसी अधिकारको मान्यता नहीं देता और जो भी हृदय तथा मस्तिष्कको ठीक न लगे, ऐसी किसी चीजको स्वीकार नहीं करता।

आन्ध्र के लोग बहादुर हैं। उन्हें अपनी परम्पराओंका अभिमान है। वे बड़े धार्मिक हैं और बलिदानकी क्षमता रखते हैं। देश उनसे बहुत भारी उम्मीद रखता है और मुझे विश्वास है कि वे उसे अवश्य पूरा करेंगे। अगर वे सभी शर्तोंका पूरी तरह पालन करनेके लिए अभी तैयार न हों तो जरा ठहर जाने में उनकी कुछ भी हानि न होगी। किन्तु अगर वे पूरी तैयारीके बिना रणक्षेत्रमें उतरेंगे तो सब-कुछ खो बैठेंगे और देशकी कुसेवा ही करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-२-१९२२

११८. भाषण: बारडोली ताल्लुका सम्मेलन में[१]

२९ जनवरी, १९२२

प्रमुख महोदय, भाइयो और बहनो,

बारडोली ताल्लुकेमें मेरा यह तीसरा दौरा है। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तब मैं केवल इतना ही देख गया था कि आप भाइयों और बहनोंने बारडोली ताल्लुकेमें कितनी तैयारी कर रखी है। उस दौरेके वक्त मुझपर या आपपर कोई जिम्मेदारी नहीं थी। जब मैं दूसरी बार यहाँ आया[२] तब हम दोनोंके ही ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ चुकी थी, क्योंकि तब अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी अपना

  1. यह भाषण सविनय अवज्ञा सम्बन्धी प्रस्ताव प्रस्तुत करते समय दिया गया था।
  2. २ और ३ दिसम्बर, १९२१ को; देखिए खण्ड २१, पृ४ ५४४-४५।