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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

उल्लंघन करनेवाला क्षेत्र निर्धारित कर देगी। ऐसे क्षेत्रमें सरकारके आदेशोंके अनुसार लोगोंको छूट भी दी जा सकती है। यह छूट उन लोगोंको दी जायेगी जो समयपर निर्धारित की जानेवाली तिथितक सरकारी खजाने में या उस उद्देश्यसे नियुक्त अधिकारीके पास करको रकम जमा करा देंगे। जहाँ सरकार नीलामीको रोकनेके लिए खुद जमीन खरीदेगी वहाँ वह जमीन दलित वर्गों लोगोंको दे दी जायेगी। ग्राम-अधिकारियोंके त्यागपत्रोंके बारेमें सरकारका कहना है कि वर्तमान परिस्थितियोंमें उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता, और यदि ये अधिकारी अपना काम करनेसे इनकार करते हैं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जायेगा।

मेरे खयालसे तो सरकारको ये एहतियाती कदम उठाने का पूरा हक है। यदि उसके सामने सामूहिक रूपसे कर देना बन्द कर देनेका खतरा हो तो उसे साधारण कानूनोंको स्थगित कर देनेका अधिकार है। हाँ, यह सत्य है कि कोई भी समझदार सरकार लोकमतको इतना तो कभी क्षुब्ध नहीं करेगी कि जनता कर देनेसे इनकार करने लग जाये। किन्तु हमें ऐसी आशा न करनी चाहिए कि जो सरकार लोकमतको इस तरह कुचलते हुए चलती है वह अपनी रक्षाके लिए प्रयत्न नहीं करेगी और अपना अस्तित्व यों ही मिट जाने देगी। इसलिए वह कमसे कम ऐसा प्रयत्न अवश्य करेगी जिससे उसका कर उगाहनेका काम न रुके। और कर न देनेवाले लोगोंकी जब्त की गई जमीनको वह जो दलित वर्गोंको दे देनेका विचार कर रही है, उसपर भी कोई आपत्ति नहीं की जा सकती। ऐसी व्यवस्था तो दोनों पक्षोंके लिए ठीक ही होनी चाहिए। असहयोगियोंने तो अहिंसाका व्रत धारण किया है। उन्होंने तो अपने लक्ष्य- की सिद्धिके लिए अपना सर्वस्व त्याग देनेकी शपथ ली है। अतः उन्हें अपनी जायदाद खुशी-खुशी नीलाम होने देनी चाहिए। दूसरी ओर सरकार, यदि कर सके तो निश्चय ही करबन्दीकी हलचलको समाप्त कर देनेका तथा कर वसूली करने भरके लिए जरूरी हर तरह के उपाय करनेका प्रयत्न करेगी। और यह विचार एक आदर्श विचार है कि ऐसी व्यवस्था की जाये जिससे जब्त की गई जमीनोंके लिए दलित वर्ग के ही लोग बोली लगायें और उन्हें खरीदें। इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है कि जिन लोगोंको हम बुरी स्थितिसे उठाकर उन्नत बनानेका यत्न कर रहे हैं, ये जब्त की गई जमीनें कुछ समयके लिए उन्हींके कब्जे में रहें?

मैं “कुछ समय के लिए” इसलिए कह रहा हूँ कि उन जमीनोंपर अभी जिनका अधिकार है उनको अपने अंगीकृत कार्य में इतनी आस्था होनी ही चाहिए और वे यह समझें कि उन्हें स्वराज्य अवश्य मिलेगा और स्वराज्य मिलनेपर उन्हें अतिरिक्त सम्मान सहित अपना पहलेवाला दर्जा फिरसे प्रदान किया जायेगा। और अगर पुराने मालिकोंको उनकी जमीन फिर लौटा दी गई तो इससे उन दलित वर्गोंका, जिनका कि सरकार इस समय शतरंजके मोहरोंकी तरह उपयोग कर रही है, कुछ भी अहित नहीं होगा। कारण इन वर्गोंके लोगोंको जीवन में भली-भाँति प्रतिष्ठित करना तथा सुखी और सन्तुष्ट बनाना स्वराज्य-सरकारका पहला कर्त्तव्य होगा।