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टिप्पणियाँ

 

एक अंग्रेज महिलाका आशीर्वाद

कलकत्तासे एक अंग्रेज महिलाने लिखा है:[१]

इस पत्रको प्रकाशित करते हुए मुझे संकोच तो हुआ ही है। क्योंकि इसमें मेरी प्रशंसा की गई है। किन्तु मेरा खयाल है कि मुझमें अहंकार नहीं है और मैं अपनी कमजोरीको परख सकता हूँ। किन्तु ईश्वरमें, उसकी सत्तामें और उसकी दयालुतामें मेरी आस्था अडिग है। मैं उस महान् कुम्भकारके हाथमें मिट्टीके लौंदेकी तरह हूँ। इसलिए मेरा अधिकार तो इस स्तुतिको ईश्वरको अर्पित करने-भरका है। इस बहनके आशीर्वादसे मैं तो इतना ही सार निकालता हूँ कि मैं इससे शक्ति लेकर और भी सशक्त बनूं।

किन्तु इस पत्रको प्रकाशित करनेमें मेरा तो इतना ही उद्देश्य है कि सच्चे असहयोगी अपने अहिंसाके पथपर दृढ़ बनें और हिंसाके खोटे मार्गपर भटकनेसे रुकें। हमारी अहिंसाका जो प्रभाव इन अंग्रेज महिलाओंपर[२] पड़ा है वह अन्य सब लोगोंपर भी अवश्य पड़ेगा, ऐसा मेरा विश्वास है।

किन्तु हमारी लड़ाईमें घृणा नहीं होनी चाहिए। हमारी लड़ाईका मूल प्रेम है, द्वेष अथवा रोष नहीं। हम तो शत्रुको भी मित्र बनाना चाहते हैं। और मुझे विश्वास है कि यदि हम अपना कार्य द्वेष-रहित होकर करेंगे तो हमारी सहिष्णुतासे पत्थर-जैसे कठोर हृदयका व्यक्ति भी द्रवित हो जायेगा। विलम्ब होनेका कारण हमारी त्रुटियाँ ही हैं। यदि हम शान्त चित्त होकर कष्टोंको सहन करते रहें तो हमें अत्यल्प कालमें ही पूर्ण विजय मिल जायेगी।

किन्तु हमने मद्रासमें भूलें की और बम्बईमें भूलें कीं। हमारे मनसे रोष अभी गया नहीं है। हमारी शान्ति अभी सशक्त मनुष्यकी शान्ति नहीं है। अभीतक हमारी शान्ति हमारी निर्बलताका चिह्न है। यदि हम अपने संख्या-बलको पहचान लें तो हम तुरन्त ही अपनी शक्तिको समझ जायेंगे। मौ० मुहम्मद अली जैसा कहते हैं, तीस करोड़ लोगोंको तो एक लाखका डर नहीं होना चाहिए। यदि हम डरते हैं तो इसमें दोष हमारा ही है। जब हम डर निकाल देंगे तब हमें स्वराज्य अपने हाथमें आ गया समझना चाहिए। और यदि तीस करोड़ लोग एक लाख लोगोंको डराकर अपना कार्य सिद्ध करना चाहें तो उनके जैसा पापी कोई न होगा। इसलिए हमें तो अपनी मर्दानगी कष्ट सहन करके ही बतानी है।

यदि हम केवल मुट्ठी-भर लोग ही जाग्रत हुए हों और अन्य सब भारतीय सो रहे हों तो भी हमें हिंसासे काम न लेना चाहिए। उस अवस्थामें हमें अपने सोये हुए भाइयोंको जगाना अवश्य अपना कर्त्तव्य समझना चाहिए।

  1. यह पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है; इसके लिए देखिए “टिप्पणियाँ”, २६-१-१९२२ का उप-शीर्षक “एक अंग्रेज महिलाका आशीर्वाद”।
  2. पत्रकी लेखिका और एक अन्य अंग्रेज महिला जिसका उल्लेख लेखिकाने अपने पत्र में किया है। इस दूसरी अंग्रेज महिलाने इससे पहले एक ऐसा ही पत्र लिखा था। पत्रके लिए देखिए यंग इंडिया, १२-१-१९२२।