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सम्पूर्ण गांधी वाङ्‍मय

परिचित ही हैं। वे खुद उसीकी जीती-जागती मूर्ति हो गये हैं। कांग्रेसके अधिवेशनतक जो लोग जेलके बाहर रह जायें अब हमें उन्हीं में से किसीको सभापतिका काम चलाने के लिए चुन लेना चाहिए। इस जैसी शुभ घड़ीमें आजतक कोई अधिवेशन नहीं हुआ। जो बात असम्भव दिखाई देती थी वही सरकारकी इस स्वागत योग्य दमन-नीतिके द्वारा प्रायः सम्भाव्य होती दीख रही है। हमारे बहुत-से बड़े-बड़े और अच्छे-अच्छे लोगोंका जेलों में होना ही स्वराज्य है। यदि सरकार हरएक असह‍्योगीको सिर्फ यह फरमान भेज दे कि वह २६ दिसम्बरको या इसके पहले अपने नजदीकी पुलिस थाने में हाजिर होकर जेल जाने के लिए गिरफ्तार हो जाये और फिर उसे तबतक न छोड़ा जाये जबतक या तो वह खुद ही असह‍्योगके लिए माफी न माँग ले या सरकारको अपनी करनीपर पश्चात्ताप न हो, तो इस स्थितिको भी मैं पूर्ण स्वराज्य कहूँगा। श्री बल्लभभाई पटेल[१] तथा उनके निष्ठावान् साथी गुजरातकी राजधानी अहमदाबादके लिए योग्य प्रतिनिधियों के स्वागतकी तैयारी करनेमें रात-दिन एक कर रहे हैं तो भी मैं कांग्रेसके अधिवेशनका न होता मंजूर करूँगा क्योंकि मेरी दृष्टिमें तो सरकारकी ऐसी आज्ञा पूर्ण स्वराज्यकी प्राप्ति ही होगी। इस तरहसे सरकार भी असहयोगियोंके झगड़ेसे मुक्त हो जायेगी और असहयोगियोंका मनोरथ भी पूरा हो जायेगा। असहयोगियोंका तो यह सिद्धान्त ही है कि या तो स्वराज्य मिले या जेल। परन्तु यदि सरकार हमें इस नव वर्षके आगमन के उपलक्ष्य में ऐसा कोई प्रेमोपहार न भेंट करे तो उसने जिन थोड़ेसे लोगोंपर यह दयादृष्टि की है उसीके लिए हमें अवश्य उसका कृतज्ञ होना चाहिए। पिछले कुछ दिनों में—अपनी याददाश्त के अनुसार—गिरफ्तार होकर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकनेवाले प्रमुख व्यक्तियोंकी सूची मैं नीचे दे रहा हूँ:

लाहौर

लाला लाजपतराय के० सन्तानम्
डा० सत्यपाल डा० गोपीचन्द
डा० गुरुबख्शराय मलिक लालखाँ
एस० ई० स्टोक्स

अजमेर

मौलाना मुइनुद्दीन मौलवी अब्दुल्ला
मिर्जा अब्दुल कादिर बेग सैयद अब्बास
हाफिज सुलतान हसन अली मौलवी नूरुद्दीन
मौलवी अब्दुल कादिर बोढारी
  1. १८७५-१९५०; गुजरातके कांग्रेसी नेता; बादमें स्वतन्त्र भारतके प्रथम उप-प्रधान मन्त्री।