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११६. टिप्पणियाँ

अहमदाबाद, नडियाद और सूरत

अहमदाबाद, नडियाद और सूरत इन तीनों नगरपालिकाओंकी लड़ाई ठीक तरह से आगे बढ़ रहीं है। वह जिस तरहसे चल रही है उससे भारत एक अच्छी बात सीखेगा। यदि इन नगरोंके लोग अपने प्रतिनिधियोंको पूरा समर्थन देंगे तो वे स्थानीय स्वराज्यके स्वरूपका उदाहरण प्रस्तुत कर सकेंगे। स्थानीय स्वराज्यसे राष्ट्रीय स्वराज्यका विकास सुगमतासे किया जा सकता है। दोनोंकी प्राप्तिके साधन एक ही हैं। दोनोंका परिणाम भी एक ही है। स्थानीय स्वराज्यमें स्थानीय लोगोंको त्याग करना पड़ता है। और राष्ट्रीय स्वराज्य में समस्त राष्ट्रके लोगोंको। इन तीनों नगरपालिकाओंको पूर्ण स्वतन्त्र होने से कौन रोक सकता है? लोग सरकार द्वारा बनाई गई नगरपालिकाओंको कर देने के बजाय स्वतन्त्र रूपसे चुने हुए अपने प्रतिनिधियोंको कर दें तो इसमें कानूनके खिलाफ कुछ नहीं है। इसलिए उन्हें किसीसे लड़ने की भी कोई जरूरत नहीं होती। इससे लोगोंके हाथोंमें सत्ता अपने आप ही आ जायेगी। इसमें प्रतिनिधि, मकान, नौकर- चाकर और कानून कायदे भी वे ही होंगे (बशर्ते कि हम उन्हींको कायम रखना चाहें); तब जरूरत केवल सत्ताको माननेसे इनकार करनेकी रह जाती है। इसीका नाम अहिंसात्मक विप्लव अथवा नया जन्म है। इसके लिए लोगोंको केवल अपने हृदयोंको टटोलना होता है। अबतक जो नगरपालिकाएँ चली हैं, वास्तवमें देखें तो लोगोंने उनमें कोई रस नहीं लिया है। लोगों के नामपर चाहे जैसे लोग उनमें नियोजित हो जाते थे और अपनी अथवा सरकारकी स्वार्थसिद्धि करते थे। मेरे कहनेका अर्थ यह नहीं है कि इन नगरपालिकाओंसे लोगोंको कतई कोई फायदा नहीं पहुँचता था। उन्होंने हमारे लिए प्रकाशका प्रबन्ध किया है, पाखानोंको साफ रखनेकी व्यवस्था की है और हमें दवादारू भी दी है। फिर भी लोगोंमें यह भावना उत्पन्न नहीं हुई है कि वे हमारी हैं। अहमदाबाद के लोग जैसे अपने व्यावसायिक संघोंकी सम्पत्तिको अपना मानते हैं वैसे नगरपालिकाकी आयको अपना नहीं मानते थे। सदस्य तक नगरपालिकाकी बैठकों में शायद ही कभी दिलचस्पी लेते थे। अब तो तीनों नगरोंके सदस्य नगरपालिकाओं की बैठकों में जाने लगे हैं और बहुत दिलचस्पी लेते हैं। अभी उनमें पूरा आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं हुआ है, अन्यथा वे लोग समस्त व्यवस्थाके स्वामी बन सकते हैं। अन्तर इतना ही है कि यदि आज लोग कर न दें तो उनपर दावा दायर किया जा सकता है। किन्तु जब उनपर से सरकारका अंकुश हट जायेगा तब लोग अपनी इच्छासे ही कर देंगे। और उस प्रकार जो कर दिया जायेगा वही सच्चे अर्थों में स्वेच्छापूर्वक दिया गया कर होगा।

ऐसी व्यवस्थासे हम सर्वथा अपरिचित नहीं हैं। हम अभीतक अपने जातीय कर प्रसन्नतापूर्वक देते रहे हैं। हम अपने व्यावसायिक संघोंके चन्दे भी देते ही हैं।