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हर सालकी एक सामान्य विधि

 

कांग्रेसका कोष

इस तरह लोगोंके सदस्य बननेसे जितना पैसा आता है उसमें से कुछ तो अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको मिलता है। परन्तु इस प्रकार मिले हुए पैसेका मुख्य उपयोग तो ताल्लुका कांग्रेस कमेटियाँ ही करती हैं। कांग्रेसको अपने अन्य खर्चोंके लिए पैसेकी जरूरत फिर भी रहती है। हम गुजरातका ही उदाहरण लें। गुजरातमें पिछले वर्ष काफी रकम इकट्ठी हुई थी। हमने जितना रुपया इकट्ठा किया था उतना खर्च कर दिया। ऐसा करना जरूरी था और ऐसा ही सोचा भी गया था। अब नये वर्ष के लिए नये सिरेसे चन्दा इकट्ठा किया जाना चाहिए। स्वदेशीके प्रचार, अछूतोद्धार और शिक्षा सम्बन्धी कार्योंके लिए पैसेकी जरूरत तो है ही। इस साल पैसा दुबारा इकट्ठा न करें तो हमारा काम आगे नहीं बढ़ सकता। इसलिए मुझे आशा है कि जो लोग गुजरात प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके कार्यको प्रोत्साहन देना चाहते हैं वे अपना चन्दा स्वयं ही भेज देंगे। यदि कोई चाहे तो अपना रुपया किसी खास कामके लिए निर्धारित कर सकता है। यानी अपनी इच्छाके अनुसार जिस प्रवृत्तिके लिए चाहे, उस प्रवृत्तिके लिए भेज सकता है। मुझे आशा है कि ‘नवजीवन’ के जो पाठक पैसा भेजना चाहें वे अधिकसे-अधिक जितना भेज सकते हों उतना भेजेंगे। यदि वे ‘नवजीवन’ की मार्फत भेजेंगे तो अखबारमें उनकी रकमकी प्राप्ति स्वीकार की जायेगी। मुझे सभी लोगोंको याद दिलानी चाहिए कि गुजरात प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीने एक-एक पाईका हिसाब प्रकाशित किया है। सारा खर्च प्रान्तीय कमेटीके अन्तर्गत बनाई गई समितिकी मंजूरीके अनुसार ही किया गया है। खर्चका अच्छेसे-अच्छा प्रमाण तो गुजरात विद्यापीठ और उससे सम्बन्धित शालाओं एवं स्वदेशी विभाग और उसकी शाखाओंसे मिलता है। सारा पैसा इन्हीं में खर्च किया गया है। वे दिन चले गये जब लोगोंका पैसा विलायती अखबारोंको खरीदने अथवा ऐसे ही अन्य कामोंमें खर्च किया जाता था। यदि हम विद्यापीठ और स्वदेशी इन दो बड़े-बड़े विभागोंके कार्यको पोषण देना चाहते हैं तो हमें पैसा अवश्य इकट्ठा करना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-१-१९२२