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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रतापसिंहको स्थित-प्रज्ञ मानता हूँ। हममें से प्रत्येकको आत्मत्यागपूर्ण जीवन व्यतीत करना और स्थित प्रज्ञ बनना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, २-२-१९२२
 

११२. उत्तर-दक्षिण

केन्द्रीय विधान-मण्डलके दोनों सदनोंमें समझौतेकी वातक सम्बन्धमें जो चर्चा हुई उससे हम देख सकते हैं कि सरकार और हमारे बीच उतना ही अन्तर है जितना उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुवके बीच। इसी कारण मैंने कहा है कि इस समय सरकारसे बातचीत करना व्यर्थ है। अभी सरकारको सत्ताका मद है। अभी उसे यह आशा है कि वह हमें गोला-बारूदकी मददसे दबा सकेगी। अभी उसे हमारे मतकी अथवा हमारे त्यागकी शक्तिपर विश्वास नहीं हुआ है। और जबतक सरकारको यह आशा है कि वह हमें दबा सकती है तबतक यदि वह हमसे समझौतेकी बात करेगी तो वह वैसी ही होगी जैसी मालिक और नौकरके बीच होती है।

सरकारके हिमायती कहते हैं कि हमारी माँग इतनी बेहूदा है कि उसपर अमल करना अशक्य है। अशक्य कह देनेसे किसी बातका अमल अशक्य नहीं हो जाता,[१] अथवा यह कहना चाहिए कि एक अशक्यता इच्छाके अभावमें होती है और दूसरी शक्तिके अभाव।

खिलाफतको माँगको मानने में क्या अशक्यता है यह अभीतक सरकार समझा नहीं सकी है। यह सारी अशक्यता उसकी बदनीयतीकी है और इस सम्बन्धमें हमारी माँग माननेकी उसकी अनिच्छाकी है। अंग्रेज लोग अरबिस्तानको खाली कर दें इसमें अशक्यता क्या है? टर्कीको उसका प्रदेश वापस दे दिया जाये, इसमें अशक्यता अथवा बाधा क्या हो सकती है? यदि अंग्रे इस बातको सहन नहीं कर सकते तो भारतके सामने यह प्रश्न आता है कि वह ब्रिटिश साम्राज्यसे अपना सम्बन्ध क्यों न तोड़ ले। इसलिए खिलाफत के प्रश्नपर उसकी अनिच्छाका तर्क तो उचित रूपसे दिया ही नहीं जा सकता।

यही बात पंजाबके मामले में भी लागू होती है। पंजाबके प्रश्नपर ऐसी कौन-सी माँग है जिसे मानना सरकारके लिए अशक्य है? मौलाना शौकत अली और सर माइकेल ओ’डायर, जहाँतक पेंशनका सम्बन्ध है, दोनों एक ही प्रकारके अधिकारी थे। फिर भी मौलाना शौकत अलीकी पेंशनको रद करते वक्त सरकारने किसीकी सलाह नहीं ली; किन्तु सर माइकेल ओ'डायर और जनरल डायरकी पेंशनोंको बन्द करना आज सरकारको भारी मालूम पड़ता है। कारण सीधा है। जिसे सरकार भला और राज्यका खैरख्वाह मानती है उसे हम अपना दुश्मन मानते हैं। सरकार सर

  1. देखिए परिशिष्ट १।