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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

इसलिए मोपलोंके अत्याचारोंके विषयमें मौलाना हसरत मोहानीका जो रुख है, उसके लिए खेद प्रकट करते हुए भी हमें समस्त मुसलमानोंके ऊपर दोषारोपण नहीं करना चाहिए और न मौलानाको मुसलमानके रूपमें कोई दोष देना चाहिए। हमें यह भाव रखकर दुःख प्रकट करना चाहिए कि हमारा एक हिन्दुस्तानी भाई यह नहीं देखता कि हमारे दूसरे हिन्दुस्तानी भाइयोंने कैसा अन्याय किया है। अगर हम लोग इसी तरह सभी चीजोंको साम्प्रदायिक दृष्टिसे देखते रहेंगे तो हममें एकता नहीं स्थापित हो सकती।

आलोचक कह सकते हैं: “ये सब वाहियात बातें हैं, क्योंकि ये वास्तविकतासे दूर हैं। ये केवल खयाली चीजें हैं। पर मेरा कहना है कि मौजूदा वास्तविकताओंके अनुरूप सिद्धान्तमें परिवर्तन करनेका असम्भव काम करने की बजाय हमें सिद्धान्तके अनुरूप, वास्तविकताओंका ही निर्माण करना चाहिए। जबतक हम ऐसा नहीं करते, हममें एकता नहीं आ सकती। मुझे तो इसमें कुछ भी असम्भव नहीं दिखता कि हिन्दू भारतीयोंकी हैसियतसे मोपलों को भी भारतीय मानकर उन्हें कुमार्गसे विमुख करनेका प्रयत्न करें। मुझे तो यह बात जरा भी अस्वाभाविक नहीं लगती कि हिन्दुओंसे कहा जाये कि आप जोर-जबरदस्तीके आगे लाचार होकर अपना धर्म बदल देनेके बजाय अपने भीतर मर मिटने का साहस और शक्ति जुटाइए। यह सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि अनेक हिन्दू ऐसे थे जिन्होंने बलप्रयोगके आगे लाचार होकर धर्म-परिवर्तन करनेकी बनिस्बत मोपलोंके कुठारका ग्रास बनना अच्छा समझा। यदि उन लोगोंने बिना किसी द्वेष या क्रोधके मृत्युका वरण किया हो तो मैं कहूँगा कि उन्होंने सच्चे भारतीयों और सच्चे मनुष्योंकी तरह और इस प्रकार सच्चे हिन्दुओंकी तरह अपने प्राण दिये हैं। क्योंकि इस तरह उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वे सबसे सच्चे भारतीयों और सबसे सच्चे मानवोंकी कोटिमें थे। यदि इनपर अत्याचार करनेवाले लोग मुसलमान न होकर हिन्दू ही होते तो भी उन्होंने इसी तरह अपने प्राण दे दिये होते। यदि हिन्दू-मुस्लिम एकता पारस्परिक आदान-प्रदानपर ही ठहर सकती है तो वह बहुत सस्ती और निकम्मी चीज होगी। क्या पतिकी वफादारी पत्नीकी वफादारीपर निर्भर है? यदि पति दुराचारी हो तो क्या पत्नीको भी वैसा ही हो जाना चाहिए ? यदि पति-पत्नी अपने आचार-व्यवहारको सिर्फ एक विनिमयकी वस्तु मानें, तो विवाह एक बहुत ही घटिया चीज बनकर रह जायेगा। एकता भी विवाह बन्धनकी तरह है; जब पत्नीका चरण पतन की ओर बढ़ने को हो, उस समय पतिके लिए और भी आवश्यक हो जाता है कि वह पत्नी से पहले की अपेक्षा अधिक घनिष्ठता स्थापित करे। वही समय है, जब उसे उसपर दूना स्नेह रस उँडेलना चाहिए। उसी तरह जब हिन्दुओंको मोपलों और मुसलमानोंसे अनिष्टकी आशंका हो, या सचमुच उनका अनिष्ट वे कर चुके हों उस समय हिन्दुओंके लिए यह और भी आवश्यक हो जाता है कि वे पहलेसे भी अधिक प्रेम दिखायें। एकता वास्तविक तो तभी मानी जायेगी जब वह कड़ेसे कड़े आघातको भी सह ले, लेकिन टूटे नहीं। उसे एक अटूट बन्धन होना चाहिए।

और मेरा विचार है कि ऊपर मैंने देशस जो-कुछ कहा है, वह हमारे स्वार्थकी दृष्टि से सही है। क्या किसी हिन्दू को जितना मोह अपने-आपसे है, उससे अधिक