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हिन्दू और मोपला

है। ब्रिटिश सरकारके प्रति तथा सामान्य रूपसे शायद समग्र अंग्रेज जातिके प्रति उनके हृदयमें घृणाके जो भाव भरे हैं, उनके कारण उन्हें मोपलोंके आचरणमें कोई दोष दिखाई नहीं देता। मौलाना साहबके खयालसे युद्ध और प्रेममें जो कुछ होता है, उचित ही होता है। उनका पक्का विश्वास है कि मोपलोंने धर्मके लिए ही संग्राम किया है। इसलिए [उनके विचारसे] मोपलोंके ऊपर किसी तरहका दोषारोपण नहीं किया जा सकता। यह तो निस्सन्देह धर्म और नैतिकताका उपहास है। लेकिन मौलाना हसरत मोहानीका धर्म-सिद्धान्त धर्मके लिए अधर्माचरणकी भी छूट देता है। जहाँतक मैं जानता हूँ, इस्लाममें ऐसा कुछ नहीं है जिसके आधारपर मौलाना साहबकी मान्यताको उचित माना जाये। इस सम्बन्धमें मैंने अनेक सुविज्ञ मुसलमानोंसे बातचीत भी की है। वे भी मौलाना साहब के दृष्टिकोणसे सहमत नहीं हैं।

मैं अपने मलाबार के साथियोंसे यही कहूँगा कि वे मौलानाकी बातका बुरा न मानें। यद्यपि धर्मके बारेमें उनका मत ऐसा अपरिष्कृत मत है, तथापि मैं जानता हूँ कि हिन्दू-मुस्लिम एकता और राष्ट्रीयताका उनसे बढ़कर कट्टर समर्थक दूसरा नहीं है। उनका हृदय उनकी बुद्धिसे बढ़-चढ़ कर है, और मेरी नम्र सम्मतिमें उनकी बुद्धि कुछ भ्रमित हो गई है।

मलाबारी मित्रोंकी यह धारणा गलत है कि भारतके आम मुस्लिम समाजने मोपलोंके अपराधोंकी निन्दा नहीं की है या किसी भी तरहसे उनका समर्थन किया है। इस्लामका आदेश है कि औरतों, बच्चों और बूढ़ोंको युद्ध कालमें भी मत सताओ। इस्लाम कुछ बहुत सुनिश्चित अवस्थाओंमें ही जिहादको उचित बताता है। इस्लामके नियमकी जहाँतक मुझे जानकारी है, उसके अनुसार तो मैं यही कह सकता हूँ कि इस तरह अपनी मर्जी से मोपलोंको जिहादकी घोषणा करनेका कोई अधिकार नहीं था। मौलाना अब्दुल बारीने मोपलोंके अत्याचारोंकी कड़ी निन्दा की है।

पर यदि मुसलमान उन अत्याचारोंकी निन्दा न भी करें तो क्या? हिन्दू-मुस्लिम मैत्री कोई सौदेबाजीकी चीज नहीं है। मंत्री शब्द ही ऐसा है जिसमें इस तरहकी किसी चीज के लिए गुँजाइश नहीं है। यदि हम लोगोंमें राष्ट्रीय वृत्ति आई है तो मानना पड़ेगा कि मोपले भी हिन्दुओंकी ही तरह हर मानीमें हमारे देशभाई हैं। हिन्दुओंको मोपलोंकी कट्टरताका हिन्दुओंकी अपनी कट्टरतासे ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए। यदि मलाबारमें मोपलोंके बजाय आज हिन्दुओंने हिन्दुओंको लूटा होता तो किसके खिलाफ शिकायत की जाती? इस तरहकी घटनाओंके प्रतिकारको ढूँढ़ निकालने की जितनी जिम्मेदारी मुसलमानोंपर है उतनी ही जिम्मेदारी हिन्दुओंपर भी है। यदि कोई मुसलमान हिन्दूके ऊपर या हिन्दू मुसलमानके ऊपर अत्याचार करता है तो वह अत्याचार एक भारतीय द्वारा दूसरे भारतीयपर समझना चाहिए और उसकी जिम्मेदारी हम सबको ओढ़नी चाहिए तथा उस बुराईको दूर करनेके लिए यत्न करना चाहिए। एकताका इसके सिवाय और कोई मतलब नहीं है। जिस राष्ट्रीयतामें कमसे-कम यह भाव नहीं वह राष्ट्रीयता किसी कामकी नहीं। राष्ट्रीयता साम्प्रदायिकता से बड़ी चीज है। इस मानीमें हम लोग पहले भारतीय हैं और पीछे हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई हैं।