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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इनकार करनेके कारण शासकों का मन उत्तेजित होता है तो हो, हमें उसकी परवाह नहीं करनी है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-१-१९२२

१०९. हिन्दू और मोपला

यद्यपि मोपला उपद्रव और मुसलमानोंके रुखपर सर्व श्री केशव मेनन तथा अन्य लोगों के पत्र पहले ही समाचारपत्रोंमें छप चुके हैं, फिर भी अपने नियमके विपरीत मैं दोनों पत्रोंके महत्त्वको देखते हुए उन्हें यहाँ फिर प्रकाशित कर रहा हूँ।[१] ‘यंग इंडिया’ के पृष्ठोंमें उनका प्रकाशन हिन्दुओंके दिलोंमें मोपलोंके पागलपनसे जो घाव हो गये हैं, उनपर शायद मरहमका कुछ काम करे। पत्र लेखकोंको अपनी दमित भावनाएँ व्यक्त करनेका अधिकार था।

मौलाना हसरत मोहानी हम लोगोंमें बड़े जीवटके आदमी हैं। वे प्रबल और दृढ़ व्यक्ति हैं। स्पष्टवादी तो वे इतने हैं कि यह गुण उनका एक दोष-सा बन गया

  1. यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। उनके कुछ अंश इस प्रकार हैं: “मोपलोंके बारेमें अहमदाबाद में खिलाफत सम्मेलन द्वारा पास किये गये प्रस्ताव, और कलकत्तेके सर्वेटके २० दिसम्बर के अंकमें प्रकाशित मौलाना अब्दुल बारीके... तार... को देखते हुए मानना पड़ता है कि मलाबारसे बाहर मुसलमानों को ही नहीं बल्कि हिन्दुओंको भी शायद ठीक-ठीक मालूम नहीं है कि मुसीबतके मारे उस जिलेमें क्या-कुछ हुआ...आशा तो यही की जाती थी कि मोपलोंकी बर्बरताके शिकार हुए हिन्दुओंके प्रति सहानुभूति प्रकट करनेके लिए हमारे मुसलमान भाईं दो शब्द अवश्य कहेंगे... किन्तु, खिलाफत सम्मेलनने जहाँ धर्मकी खातिर अपने प्राणोंकी बलि देनेके लिए मोपलोंको बधाई दी है, वहाँ हिन्दुओंके साथ उन्होंने जो बर्बरता की उसकी निन्दामें उससे दो शब्द कहते नहीं बने...सच्चे सत्याग्रह के सामने स्पष्ट शब्दों में सच्ची बात कह देनेके अलावा और कोई उपाय नहीं है... सत्य, हिन्दू-मुस्लिम एकता या स्वराज्यसे कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण चीज है...और दुर्भाग्यसे यह एक निर्विवाद सत्य है कि मोपलोंने हिन्दुओंके साथ यह सच है कि कुछ प्रमुख मुसलमान नेताओंने मोपलोंकी बर्बरताकी बरतापूर्ण व्यवहार किया... किन्तु आम मुस्लिम समुदायने अपने सहधर्मियों द्वारा मलाबारमें किये गये अन्यायके निराकरणके लिए क्या किया है?”
    “मौलाना मोहानीके अनुसार मोपलों द्वारा हिन्दुओंका लूटा जाना ठीक था। वे कहते हैं कि मोपलों और सरकारके बीच युद्धकी स्थिति थी, और इसलिए लूट-पाट करना अवैध नहीं था...मौलाना साहवको शायद नहीं मालूम कि उस समय मोपलोंका ऐसा कोई प्रतिपक्षी नहीं था जो हिन्दुओंके पक्षसे उनका मुकाबला करता, या कि जिसे हिन्दू लोग सहायतार्थं बुला सकते थे। हिन्दुओंपर उन्होंने मनमाने ढंगसे एकाएक धावा बोल दिया। किसी उत्तेजनाका कोई कारण भी प्रस्तुत नहीं किया गया था... मोपलोंकी दूसरी बर्बरताओंका औचित्य ठहराते हुए मौलाना साहब कहते हैं कि वह सब तो उन्होंने मुख्यतः बदला लेनेके लिए किया, क्योंकि उन्हें सन्देह था कि फौजको हिन्दुओंने ही बुलाया है या यह कि वे फौनकी मदद कर रहे हैं... क्या मौलानाको महसूस नहीं होता कि उनके मुँहसे ऐसी बातें निकलनेका परिणाम कितना घातक हो सकता है?”