पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२९९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७५
उत्तर-दक्षिण

असम्भव और असहयोगको न चलने देने के लिए दमनको एकमात्र उपाय मानते हैं। अगर मैं कांग्रेसकी माँगोंको असम्भव और असम्भव आदर्शोंकी प्राप्ति के लिए किये जा रहे प्रयासको निष्फल करने के लिए बलके प्रयोगको उचित मानता तो मैं भी अपना मत सरकारके ही पक्षमें देता। इसलिए सरकार और सरकारके समर्थकोंका रवैया समझने में, बल्कि उसकी कद्र करनेमें भी मुझे कोई कठिनाई नहीं है।

लेकिन मैं इस सरकारको बहुत अच्छी तरह पहचानता हूँ और इसीलिए मेरा उसपर कोई भरोसा नहीं है और मैं उसका विरोध करता हूँ। सरकार भारतको जिस रास्ते ले जाना चाहती है उस रास्तेपर चलने से हमें आजादी कभी मिल ही नहीं सकती।

आइए, हम इस मामलेपर जरा विस्तारसे विचार करें।

खिलाफत-सम्बन्धी माँगको भला असम्भव माँग क्यों कहा जाता है? कांग्रेस जो चाहती है वह सिर्फ यही तो है कि यदि भारत सरकार और साम्राज्य सरकार यह चाहती हों कि लोगोंका सहयोग उनके साथ कायम रहे तो उन्हें इन माँगोंकी पूर्ति के लिए लोगोंके साथ मिलकर काम करना चाहिए। उन्हें अपने उतने कर्त्तव्यका अवश्य पालन करना चाहिए जितना स्वयं उन्हींसे सम्बन्ध रखता है, तथा इसके बाद माँगका जो हिस्सा बच रहता है उसके लिए जोरोंके साथ इस तरह प्रयत्न करना चाहिए मानो वह उन्हींकी अपनी शिकायत है, उनकी अपनी माँग है। यदि फ्रांस इंग्लैंडसे डोवर छीन लेनेका प्रयत्न करे और यदि भारत गुप्त रूपसे फ्रांसको मदद करे, या डोवरपर अपना अधिकार कायम रखनेके इंग्लैंडके प्रयत्नके प्रति स्पष्ट रूप से उदासीनता अथवा विरोध-भाव दिखाये तो उस समय साम्राज्य सरकार क्या करेगी? यदि उस हालत में साम्राज्य सरकार खामोश नहीं बैठेगी तो जब खिलाफतको छिन्न-भिन्न किया जा रहा हो तब क्या भारतसे खामोश बैठे रहनेकी आशा की जा सकती है?

अच्छा, पंजाबकी माँगोंमें भी कौनसी बात असम्भव है? इस प्रकरणके कानूनी नुकतोंपर वे क्यों जोर दे रहे हैं? यदि वे उसके नैतिक बलाबलपर ध्यान देंगे तो कानूनी बलाबल अपना निपटारा आप कर लेगा। लड़कपनमें मैंने एक कानूनी सिद्धान्त पढ़ा था कि जब कानून और न्यायमें विरोध उत्पन्न हो तब न्यायको प्रधानता दी जानी चाहिए। मेरे लिए वह सिद्धान्त महज किताबी चीज नहीं है। पर मुझसे कहा गया है कि पेन्शन बन्द करनेकी माँग करना अनीतियुक्त है; क्योंकि वह तो मुल्तवी किया हुआ वेतन है। यदि यही बात है तो सरदार गौहरसिंह क्यों ‘मुल्तवी किये हुए वेतन’ से वंचित रखे गये और क्यों दूसरे पेन्शनरोंको धमकियाँ दी गईं कि यदि वे इस आन्दोलनमें शरीक होंगे तो उनकी पेन्शनें बन्द कर दी जायेंगी। जो नौकर अपने मालिकको कलंकित करता है क्या उसे कहीं वेतन या पेन्शन मिलती है? क्या सर माइकेल ओ’डायर या जनरल डायरने अपनी ‘निर्णयकी भूल’ को कभी मंजूर किया है? जलियाँवाला बागमें जिन लोगोंका खून किया गया, या जिन निरपराध लोगोंको पशुओंकी तरह पीटा गया, या पेटके बल रेंगाया गया, उनकी सन्तान क्यों उन लोगों के वेतन के लिए रुपया दे जो इन तमाम क्रूर कार्योंके लिए जिम्मेदार हैं? जो