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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

युवराजकी यात्राके दिन फतवेका उल्लंघन करते हुए केवल अपनी गाड़ी ही नहीं चलाई बल्कि दूसरोंको भी गाड़ी चलाने के लिए उकसाया था।

मैं इसपर यह कहनेकी धृष्टता करता हूँ कि (अगर यह खबर सच है तो) जिसने भी तलाककी इजाजत दी हो उसने इस्लामके कानून और सभ्यताके खिलाफ काम किया है――उसने भारी भूल की है। इस्लाममें ऐसी छोटी-छोटी बातोंपर कहीं तलाक नहीं दिया जाता। अगर हड़तालें ऊपर लिखे तरीकोंसे मनाई जा रही हों तो वे किसी कामकी नहीं। ऐसी हड़तालें जनता के विचारोंको स्वतन्त्रतापूर्वक जाहिर नहीं कर सकतीं। और मुझे हड़ताल जैसे थोड़े समय के लिए अपनाये गये उपायका उतना खयाल नहीं जितना कि इस्लाम धर्म और असहयोग-जैसे उच्च सिद्धान्तकी नेकनामीका है। असहयोगका कानून तो विरोधी विचारों और कार्योंके प्रति पूरी सहन- शीलता रखने तथा उनका आदर करने की आज्ञा देता है। और इस्लामी कानून भी जहाँतक कि एक गैर-मुस्लिम अपनी राय दे सकता है, इतनी ही कड़ी सहनशीलताकी आज्ञा देता है। पैगम्बर साहबको किसी बातसे इतना दुःख न हुआ होता जितना कि उन्हें अपने नये धर्म के प्रचारके आरम्भिक कालमें मक्काके लोगोंकी असहिष्णुतासे होता। इसलिए वे कभी असहिष्णुताका समर्थन नहीं कर सकते थे। “धार्मिक बातोंमें जबरदस्ती से काम न लिया जाये” यह उन्हें तभी कहना पड़ा होगा जब उनके नये-नये शिष्य नये धर्म प्रचारके समय समझदारीके बजाय जोशसे ही ज्यादा काम लेने लगे होंगे।

हम चाहे हिन्दू हों या मुसलमान अथवा और कोई हों, उसकी कोई बात नहीं। लोकतान्त्रिकताकी भावना, जिसका कि हमें भारतमें प्रचार करना है, हिंसाके बलपर नहीं फैलाई जा सकती, फिर वह वचनकी हिंसा हो या शरीरकी, प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-१-१९२२

१०६. उत्तर-दक्षिण

विधान-सभा और राज्य परिषद् (कौंसिल ऑफ स्टेट) में हुई बहससे यह बखूबी सिद्ध हो जाता है कि सरकारकी नीयतमें और इसलिए इस समय गोलमेज परिषद्की उपयोगितामें मेरा अविश्वास बिलकुल उचित है।[१] सरकारके समर्थक कांग्रेसकी माँगोंको

  1. इंडिया इन १९२१-२२ में प्राप्त इस बहसकी रिपोर्टके कुछ अंश इस प्रकार हैं: “...भारतीय विधान मण्डलका दिल्ली अधिवेशन जनवरीके मध्यमें आरम्भ हुआ। ...इस अधिवेशनकी एक सबसे ज्यादा नाटकीय बहस श्री ईश्वरशरणके इस प्रस्तावपर हुई कि सरकार अपनी “दमन-नीति” का तत्काल परित्याग करे।... सरकारकी ओरसे सर विलियम विन्सेंट और डा० समूने अपने पक्षको बहुत प्रभावशाली ढंग से पेश करते हुए जोरदार भाषण दिये...प्रस्ताव और तत्सम्बन्धी संशोधन निश्चित रूपसे नामंजूर कर दिये गये। राज्य परिषद् ने भी उस प्रस्तावको नामंजूर करके जिसमें गोलमेज परिषद्की रूपरेखा तथ करनेके लिए दोनों सदनोंके एक संयुक्त अधिवेशनकी बात कही गई थी सरकारकी कार्यकारिणीकी नीतिको विधान सभा द्वारा की गई स्वीकृतिको पुष्टि कर दी।