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अपने आपसे होशियार!२७३

नाम देकर उनपर आरोप लगाये हैं; इसलिए मैं यहाँ उनके पत्रके कुछ एक अंश ही उद्धृत कर रहा हूँ। उनका कहना है:

मैंने उस दिन भीड़का पागलपन अपनी आँखोंसे देखा है। यदि में हड़तालको एक शर्मनाक असफलता न कहूँ तो में अहिंसाकी अपनी आस्थाके प्रति सच्चा नहीं रहूँगा। पुलियनथोपके दिनोंकी जातीय कटुताने फिरसे सिर उठा लिया है। आपने शायद अब्राह्मणों द्वारा उनके नेताओंके सम्मेलन में दिये गये कटुतापूर्ण भाषण पढ़े होंगे। आप तो इन दिनों नरमदलीय लोगोंको अपना समर्थक बनाने के लिए जी-तोड़ कोशिशमें लगे हुए हैं, लेकिन मद्रासमें हम लोगोंने एक ओर तो ब्राह्मणों और अब्राह्मणों और दूसरी ओर आदि द्रविड़ों और अन्य लोगोंके बोचकी खाई और भी चौड़ी कर दी है। इस सबका निराकरण करने के लिए कमसे कम इतना तो करना ही चाहिए कि हम अपनी कमजोरियाँ स्वीकार करें और सभी सम्प्रदायों, विशेषकर पंचम वर्ण और अन्य वर्णोंके लोगोंके बीच अन्तर्जातीय एकता स्थापित करनेका प्रयास पूरी निष्ठासे करें।

क्या पुरुष, क्या स्त्री और क्या बालक, सरकारने किसीको भी नहीं छोड़ा; इसलिए मैं उसकी आलोचना करते जरा भी नहीं हिचकता। किन्तु उसने अहिंसा व्रत थोड़े ही धारण किया है, जिससे वह अपना हाथ रोके। आखिरकार पशुबल तो उसका धर्म ही बना हुआ है। किन्तु असहयोगियोंके विषयमें किसीके भी दिलमें सन्देह के लिए जगह न रहनी चाहिए। अगर इन दोनों पत्रोंमें लिखा हाल कुछ भी ठीक हो तो अभी मद्रासको बहुत कुछ करना बाकी है। मुझे तो मुख्य-मुख्य बातोंकी सत्यतामें जरा भी सन्देह नहीं। तब तो असहयोगियोंने तथा उनके साथियोंने अपने दुष्कृत्योंसे क्या स्त्री, क्या पुरुष और क्या बालक किसीको भी नहीं छोड़ा। युवराजके स्वागतमें लोगोंका भाग लेना चाहे कितना ही उत्तेजक क्यों न हो, पर स्त्रियोंके कामों में बाधा डालना, उन बेचारे स्काउटोंको इस तरह सताना तथा जनताकी स्वतन्त्रताका इतनी बुरी तरहसे अपहरण करना, यह तो स्वराज्यका बड़ा बुरा शकुन हुआ।

हमें तो सरकारके अत्याचार तथा उसकी गलतियोंकी बनिस्बत खुद अपनी ही गलतियों तथा हिंसावृत्ति से अधिक डरना चाहिए। सरकारकी भूलोंसे तो, यदि हम उनका अच्छा उपयोग करें तो, हमें फायदा ही होता है जैसा कि अभीतक हुआ है। किन्तु अगर खुद हमारे अन्दर हिंसा या असत्यका अंश हुआ तो वह हमारे लिए घातक होगा। यदि खुद अपने ही घरका बन्दोबस्त हम न कर सके, तो हम अपने ही हाथों अपना सत्यानाश कर लेंगे, और असहयोगका नाम लेते ही लोग थू-थू करने लगेंगे।

इस सिलसिले में मुझे किसीने ‘रंगून डेली न्यूज’ समाचारपत्रकी एक कतरन भेजी है। मैं यहाँ उसका उल्लेख किये बिना नहीं रह सकता। समाचार इस तरह है:

हमें विश्वस्त सूचना मिली है कि पूर्वी रंगूनके एक बग्धीवाले, निजामुद्दीन- को उसकी पत्नीने पिछले बृहस्पतिवारको इसलिए तलाक दे दिया है कि उसने
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