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खतरे से भरपूर

दे देना चाहिए। वह व्यवस्थित रीतिसे काम करके फिर लिया जा सकता है। झज्जरके मामलेमें, यदि टाउन हाल दे देना पड़े, तो निर्वाचित सदस्य, जिनकी बहुसंख्या है, इस आशयका एक प्रस्ताव पास करके कि कांग्रेस कमेटी इसे इस्तेमाल करे, उसे फिर ले सकते हैं। यदि निर्वाचित सदस्य ऐसा न करें, तो निर्वाचक एक लिखित प्रार्थना द्वारा, निर्वाचित सदस्योंसे यह माँग कर सकते हैं कि वे उनकी इस रायके मुताबिक काम करें।

पण्डित श्रीराम के विरुद्ध गवाही देनेवालोंका सामाजिक बहिष्कार साफ तौरपर एक गलती है जो अपने ही उद्देश्यको हानि पहुँचायेगी। हमें अपने विरोधियोंके सामाजिक बहिष्कारका सहारा नहीं लेना चाहिए। इसका अर्थ दबाव होता है। हम जब स्वतन्त्र विचार और स्वतन्त्र कार्यके अधिकारका दावा करते हैं, तो हमें वही अधिकार दूसरोंको भी देना चाहिए। बहुसंख्यकोंका शासन जब दबाव डालनेवाला हो जाता है तो वह उतना ही असह्य होता है जितना कि अल्पसंख्यक नौकरशाहीका शासन। हमें अल्प- संख्यकोंको नरमी के साथ समझा-बुझाकर और तर्क द्वारा अपने विचारपर लानेकी धैर्यके साथ चेष्टा करनी चाहिए। हमें, क्योंकि हुक्मपर और सजाके डरसे ही काम करनेका प्रशिक्षण मिला है, इसलिए इस बातकी काफी सम्भावना है कि हम, दिन-प्रतिदिन प्राप्त हो रही शक्तिके एहसाससे, अपनेसे कमजोर लोगोंके साथ के अपने सम्बन्धों में शासकोंकी गलतियोंको और भी बड़े पैमानेपर दोहरायें। वह स्थिति पहली स्थितिसे ज्यादा बुरी होगी।

मैं यह जानता हूँ कि लाला दौलतराम गुप्तके पत्रपर खुली बहस करनेसे झज्जरके लघु नाटकके पात्रोंको गलत समझा जा सकता है और उनके लिए खतरा पैदा हो सकता है। अधिकारी सम्बन्धित तथ्योंको आसानीसे तोड़-मरोड़ सकते हैं और उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर सकते हैं, जैसा कि वे प्रायः करनेको तैयार रहते हैं। लेकिन क्योंकि यह मामला बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और मेरे द्वारा खुली चर्चासे शायद जो खतरा हो सकता है उससे भी बड़ा खतरा कार्यकर्त्ताओंने अपने लिए पहले ही पैदा कर लिया है, इसलिए मैंने कब्जेकी इस कार्यवाहीके पक्ष और विपक्षपर खुली चर्चा करना अपना कर्त्तव्य समझा है। कार्य यद्यपि खतरे से भरा है, पर फिर भी इसकी बहादुरीकी सराहना करनी पड़ती है। असहयोगी अपनी जानकी बाजी लगा चुके हैं। उनका कुछ भी छिपा नहीं है। परन्तु जो व्यक्ति गुप्त पत्र लिखना चाहते हैं वे खुशीसे ऐसा कर सकते हैं। मैं उनके रहस्यकी रक्षा करूंगा। लेकिन मेरा सारा काम क्योंकि खुले खजाने होता है और मेरी डाक बहुतसे सहायकोंके हाथोंमें से गुजरती है, इसलिए मैं गुप्त पत्र-व्यवहारको जहाँतक सम्भव है प्रोत्साहन नहीं देना चाहूँगा। यद्यपि सरकारने आम तौरपर मेरे पत्रोंमें हस्तक्षेप नहीं किया है――इसके लिए उसकी प्रशंसा करनी चाहिए――पर पत्र लिखनेवालों को यह भी समझना चाहिए कि सभी पत्रोंकी तरह मेरे पत्र भी उसकी दयापर निर्भर हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-१-१९२२