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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर सकूं कि मुझे सूचनाएँ देनेवाले सब लोग गलत थे और भारतीय जेलोंमें कैदियोंके साथ कोई अमानुषिक व्यवहार नहीं किया गया, तो इससे अधिक खुशीकी बात मेरे लिए और कोई नहीं होगी। जहाँतक माफीनामोंका सवाल है, हस्तलिखित ‘इंडिपेंडेंट’ उन तथ्योंको उजागर कर रहा है जो यह बताते हैं कि वे किस तरह बलात् लिखवाये गये हैं। बंगालसे इसकी आश्चर्यजनक पुष्टि आई है। दिल्लीके बारेमें लाला शंकरलालने जो आरोप लगाया है, मैं उसपर शक करने को तैयार नहीं हूँ। क्या सरकारने यह नहीं कहा कि यदि कैदी माफी माँग लेते हैं तो उन्हें छोड़ दिया जायेगा? काफी छानबीन के बाद और जिम्मेदारी के साथ लगाये गये आरोपोंको चटपट रद कर देनेके दिन अब लद गये हैं। चीफ कमिश्नरने जिस तरहकी भाषाका प्रयोग ठीक समझा है उससे भारतमें कोई भी बौखलाने या धोखेमें आनेवाला नहीं है। वे कहते हैं: “लेखमें जो आरोप हैं वे ऐसी असन्तुलित भाषामें हैं कि बुद्धिमान पाठक उनपर विश्वास नहीं कर सकता।” यह ऐसी बात है जिसे मैं अकड़ दिखाना कह सकता हूँ। अधिकारियोंको, यदि वे जनसाधारणके सेवक और मित्र बनना चाहते हैं तो, अकेलेपन और अलगावके अपने बुर्जंसे नीचे उतरना होगा, उन्हें जन-साधारणसे मिलना-जुलना होगा और उन्हींकी तरह सोचना होगा। चीफ कमिश्नर यदि यह कहते कि प्रारम्भिक स्थितियोंमें कठिनाइयाँ अनिवार्य थीं परन्तु सरकार राजनीतिक बन्दियोंको पृथक करने और उनके साथ अच्छा बरताव करनेकी भरसक कोशिश कर रही है, तो वह कहीं ज्यादा अच्छा रहता। वह एक उपयुक्त और सच्चा वक्तव्य होता। क्योंकि चाहे यह बात दिल्ली जेलके बारेमें ठीक हो या नहीं, पर मैं धन्यवादपूर्वक यह स्वीकार करता हूँ कि, मिसालके लिए, आगरेमें हालात काफी सुधरे हैं । विभिन्न स्थानोंके बहुत सारे राजनीतिक कैदी वहाँ एक जगह रखे गये हैं और उनके साथ मनुष्योंका-सा व्यवहार हो रहा है। सभी कैदियोंसे अच्छा व्यवहार करनेका सवाल तो अब भी बना हुआ है। साधारण अपराधी भी स्वच्छ और पर्याप्त वस्त्रों, स्वच्छ और पर्याप्त भोजन तथा समुचित शौचालयका, जहाँ पर्देकी व्यवस्था हो, समान अधिकार रखते हैं। महादेव देसाईके साथ जब साधारण कैदीका-सा बरताव किया गया तब इन सब चीजोंका अभाव था। यह जानकर कि उनके और उनके साथियोंके साथ अब अच्छा बरताव हो रहा है, कोई बहुत सुख नहीं होता। उनके साथ जब खास तौरपर अच्छा बरताव होने लगा तो उन्होंने अच्छे बरतावका एक प्रमाणपत्र दे दिया। परन्तु संयुक्त प्रान्तकी सरकारने उसे प्रकाशित कर उनके उदार स्वभावका दुरुपयोग किया है। नैनी जेलमें उनके दाखिल होनेपर उनके साथ बरती गई अमानुषिकता के बारेमें मैंने ‘यंग इंडिया’ (५ जनवरी) में जो कुछ छापा है, उसके एक-एक शब्दपर मैं दृढ़तासे कायम हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-१-१९२२