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टिप्पणियाँ

भोगना पड़ता है जितना कि सामान्य जनताको। इससे पुलिसमें बेचैनी पैदा हो रही है जिसके चिह्न आसानीसे देखे जा सकते हैं। अध्यक्ष सावधानीसे इसे इस तरह व्यक्त करते हैं:

मातहत सिपाही यदि किसी उपद्रवकारी भीड़को तितर-बितर करने या उसपर गोली चलाने के अपने अफसरके हुक्मको मानने से इनकार कर दें, तो इसका असर क्या होगा? आप इस विचारपर हँस सकते हैं। मैं भी जानता हूँ कि इस तरहकी चीज असम्भव या कमसे कम अवांछनीय है। लेकिन कोई नहीं जानता कि हालात किस तरह बदलते हैं। आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि देशके लोग अब जेलसे डरते नहीं हैं, और यह भावना मातहत सिपाहियों में भी आ गई है।

पूर्णबाबूको इस सब स्पष्टवादिताका मूल्य चुकाना पड़ा। उन्हें सर हेनरी व्हीलरके आगे पेश होना पड़ा जहाँ उन्हें फौरन अपनी ड्यूटीपर जानेका हुक्म मिला। परन्तु प्रतिनिधियोंने इस हुक्मके खिलाफ हलका सा प्रदर्शन किया और पूर्णबाबूको विजयीकी तरह उनकी रेलगाड़ीसे एक जुलूसके साथ कान्फ्रेंस में वापस लाया गया ताकि वे उसकी कार्रवाई पूरी करा सकें ।

प्रतिवाद

दिल्ली के माननीय चीफ कमिश्नरने उन आरोपोंके[१] खण्डनका कष्ट उठाया है जो जेलों में होनेवाले व्यवहारके सम्बन्धमें ५ तारीखके ‘यंग इंडिया’ में लगाये गये थे। जहाँतक उनके जवाबके उस अंशका सम्बन्ध है जो दिल्ली जेल सम्बन्धी विशिष्ट आरोपोंका प्रतिवाद करता है, मेरी उससे तसल्ली नहीं हुई। जहाँतक उस अंशका सम्बन्ध है जो सामान्य आरोपों के बारेमें है, उसमें कोई तुक नहीं है। कोई भी बेखटके यह कल्पना कर सकता है कि दिल्ली जेलमें खाने और कपड़ेकी व्यवस्था और जेलोंसे बेहतर नहीं है। सर्वश्री सन्तानम् और देसाईके बयानसे वहाँ दिये जानेवाले भोजनके सम्बन्ध में लाला शंकरलालकी बातका समर्थन होता है। पहननेवाला ही जानता है कि जूता कहाँ काटता है। लाला शंकरलालने कोड़े लगानेका कोई आरोप नहीं लगाया है। जिस व्यक्तिने आरोपोंकी सूचना दी है उसने दिल्ली जेलमें कोड़े लगाने की बात नहीं कही है। उसने केवल यह सुना है कि कुछ जलोंमें कोड़े लगाये गये हैं। और यह बात पंजाब और बंगालके बारेमें सरकारी तौरपर स्वीकार कर ली गई है। जहाँतक इलाहाबादका सम्बन्ध है, श्री महादेव देसाईके गम्भीर आरोपोंका अभीतक खण्डन नहीं हुआ है। बनारस में कैदियोंको करीब-करीब नंगी हालत में छोड़नेकी बातका भी प्रतिवाद नहीं किया गया है। डा० गोकुलचन्दने दिलको दहलानेवाली जिन बातोंका पर्दाफाश किया है, वे अपनी कहानी आप कहती हैं। इन सब परिस्थितियोंमें, दिल्लीके चीफ कमिश्नर की रिपोर्टका भारतमें कोई प्रभाव नहीं हो सकता। यदि मैं यह स्वीकार

  1. देखिए “टिप्पणियाँ”, ५-१-१९२२ का उप-शीर्षक “जेल जीवनकी झांकी”।