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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

पुलिस कान्फ्रेंस

डिप्टी सुपरिन्टेंडेंट पुलिस, बाबू पूर्णचन्द्र विश्वासने कुछ दिन पहले, कलकत्तेमें हुई अखिल भारतीय पुलिस कान्फ्रेंसके अध्यक्षकी हैसियतसे, जो भाषण दिया था उसपर लोगोंने उतना ध्यान नहीं दिया जितना कि उसके महत्त्वको देखते हुए देना चाहिए था। पूर्णबाबूने पुलिसकी पूरी स्थितिको विशद रूपमें रखा है। इसमें सन्देह नहीं कि भारतमें पुलिस बदनाम है। दमनकी आजकलकी क्रूर कार्यवाहियोंसे यह बदनामी शायद और बढ़ी है। परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पुलिस सरकारके हाथका महज एक हथियार है। अध्यक्ष कहते हैं:

यहाँ भारतमें कानून सरकार द्वारा बनाये गये हैं और लोगोंका यह विचार है कि कानून उनपर शासन करनेके लिए, उनकी स्वाभाविक महत्त्वाकांक्षाओंको नियन्त्रित करनेके लिए बनाये गये उनकी भल लिए नहीं बनाये गये हैं। हम इन कानूनोंका सम्मान कायम रखते हैं और इन्हें लागू करते हैं। हमारी इतनी बदनामीका एक कारण यह है। और सुधार योजनाके शुरू होनेसे लोग अब यह महसूस करने लगे हैं कि अप्रिय तो कानून हैं, पुलिस नहीं। हमारा कसूर सिर्फ यह है कि हमें इन अप्रिय कानूनोंको अमलमें लाना होता है।

जैसा कि अध्यक्ष कहते हैं, लोगोंपर शासन करने, उनपर आधिपत्य जमाने, उनकी स्वाभाविक महत्त्वाकांक्षाओंको नियन्त्रित करनेका विचार, भारतकी पूरी नौकरशाही व्यवस्थामें व्याप्त है। और क्योंकि यह कार्य प्रत्यक्ष रूपसे पुलिसके हाथों सम्पन्न होता है, इसलिए इस विषयमें उसके एक प्रतिष्ठित सदस्यकी स्वीकारोक्तिको पढ़ना दिलचस्प लगता है:

अपनी बदनामीकी चर्चा करते हुए मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता, चाहे यह नागवार ही क्यों न लगे, कि हमारे आचरण-नियम और हमारे अफसरोंका रवैया जनतासे हमारे अलगावको और बढ़ाता है। लोगोंके साथ हम आजादीसे मिल-जुल नहीं सकते, उनका हार्दिक सहयोग और सहानुभूति माँग नहीं सकते, जो कि हमारे कर्तव्योंके लिए सबसे अधिक आवश्यक है। यदि हम ऐसा करते हैं तो हमारे अफसर, जरा-सा भी बहाना मिलनेपर, हमें शकको नजरोंसे देखते हैं, सजातक दे देते हैं और हमारी तरक्की रोक दी जाती है। साथियो, मैं पूछता हूँ कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? मैं एकदम कह सकता हूँ कि हमारा कसूर सिवाय इसके और कुछ नहीं है कि हम इस बदनाम विभागसे सम्बन्ध रखते हैं, और हमारे अफसर और हमारे आचरण-नियम इस खाईको और चौड़ा करते हैं।

लेकिन सरकार जहाँ भारतीय पुलिसको इस ढंगसे इस्तेमाल करती है, वहाँ उसका बरताव उसके साथ इस कारण क्या कुछ बेहतर है? जातीय हीनताका कष्ट, जैसा कि उसकी शिकायतोंकी लम्बी सूचीसे जाहिर हो जाता है, उन्हें भी उतना ही