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टिप्पणीयाँ

गोद में छोड़ दें तो हम सरकारकी तमाम अग्नि-परीक्षाओंसे बेदाग बाहर निकल आयेंगे-- हमें जरा भी आँच न आने पायेगी । यदि उसकी इच्छा और आज्ञाके बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता तो फिर इस बातपर विश्वास करनेमें कौन-सी दिक्कत है कि वह इस सरकार के द्वारा ही हमारी परीक्षा ले रहा है ? मैं तो बस अकेले उसीको अपने दुःख-दर्दकी कहानी सुनाऊँगा । और क्रोध भी करूँगा तो उसीपर जो इतनी बेरहमीके साथ हमारी परीक्षा ले रहा है । और यदि हम केवल उसीपर निर्भर रहें तो वह हमें अवश्य सान्त्वना देगा और हमें क्षमा कर देगा । जालिमके सामने अडिग खड़े रहनेकी रीति यह नहीं है कि हम उससे घृणा करें या उसपर हाथ उठायें; बल्कि यह है कि हम अपने उस दुःख और क्लेशके समय ईश्वरके दरबार में नम्र होकर सच्चे दिलसे उसे पुकारें ।

आगा सफदरकी ओरसे

आगा सफदर के दो सुन्दर पत्र प्राप्त हुए हैं जिनमें उन्होंने दर्शाया है कि कैसे वीर पंजाबियों को झंझटमें डालकर उनपर मुकदमे चलाये गये हैं, कैसे वे इस परीक्षामें सच्चे सिद्ध हुए हैं, किस प्रकार पराक्रमी सिख, जो अबतक सरकारके सर्वोत्तम मित्र और समर्थक रहे हैं, सरकारकी सारी शक्तिकी अवज्ञा कर रहे हैं जो कुटिलताके साथ उनके विरुद्ध प्रयुक्त हो रही है । तथा किस प्रकार पंजाब के समस्त नेता एकमत होकर कार्य कर रहे हैं तथा कैसे इस असाधारण कठिनाईमें भी वे सब अपने मानसिक सन्तुलनको स्थिर रखे हुए हैं । प्रतिभाशाली तथा उदार आगा साहबने गौरवपूर्ण किन्तु आपत्ग्रस्त पंजाब के विषयमें जो कहा है उसे उन्हीं के शब्दों में सुनिए :

...एसोसिएटेड प्रेसके जरिये आपने उन परिस्थितियोंके विषयमें सुना होगा जिनमें कि गिरफ्तारियाँ की गई थीं । लालाजीने बहुत चाहा कि आपकी इच्छाओं के अनुसार चलें और गिरफ्तार न हों परन्तु चूंकि वे पंजाब प्रान्तीय कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष थे, उन्हें सभामें जाना पड़ा और गिरफ्तार हुए । यह सभा सार्वजनिक सभाओंकी मनाही और स्वयंसेवक दलको समाप्त करनेके आदेश

१. यहाँ पत्रोंके केवल कुछ अंश ही दिये जा रहे हैं ।

२. लाला लाजपतराय (१८६५-१९२८); पंजाबके राष्ट्रवादी नेता, लेखक और राजनीतिज्ञ; सर्वोन्टस ऑफ पीपुल्स सोसाइटीके संस्थापक; १९२० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष ।

३. १७ नवम्बर, १९२१ को बम्बई में हुए उपद्रवोंके बाद स्थानीय सरकारोंको सूचित किया गया कि “उत्तेजनात्मक भाषणोंकी बहुतायत रोकनेके लिए राजद्रोहात्मक सभा अधिनियमके अमलकी इजाजत दी जायेगी . . . १९०८ का दण्डविधि संशोधन अधिनियम भाग २ सख्ती से अमल में लाया जाये ताकि उन स्वयंसेवक-संस्थाओंकी गैरकानूनी कार्रवाइयोंसे निबटा जा सके जिनकी कवायदों, घरनों और धमकियोंसे देशको शान्तिको खतरा पैदा हो गया है... भारत सरकारने... प्रान्तीय प्रशासनको निर्देश दिया कि राजद्रोह सविनय अवज्ञाके उपक्रम और हिंसा भड़कानेवाले कामोंसे तत्काल निपटा जाये। "

इंडिया इन १९२१-२२ ।