पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२८९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६५
टिप्पणियाँ

 

किसी भी तरहकी कोई गड़बड़ नहीं हुई और कलकत्तेके सार्वजनिक मैदानोंमें अहिंसा एक बार फिर विजयी रही। ...

एक बंगाली मित्र पूछते हैं कि बंगाल, जिसने अराजकतावादियोंके उग्र सम्प्रदायको जन्म दिया है, क्या अन्ततक अहिंसक रह सकेगा। जैसा ऊपर दिया गया है इस तरहके घोषणा-पत्रोंसे और इसमें जनताके जिस आत्मसंयमकी चर्चा है उससे मुझे सच-मुच आशा बँधती है। अराजकतावादी भी आखिर अपने देशसे प्रेम करते थे। अभी कुछ दिन पहलेतक हम हर तरहके अन्याय और अपमानको जिस पुरुषार्थ-हीनतासे सह रहे थे, उससे उन्हें मार्मिक पीड़ा होती थी। ‘भिखारीपनकी नीति’ से वे बुरी तरह उकता गये थे। परन्तु आज अपने चारों ओर पुरुषों और स्त्रियों, बच्चों और बूढ़ोंको अपूर्व साहसके आश्चर्यजनक उदाहरण प्रस्तुत करते देखकर भयानकसे भयानक अराजकतावादीका भी सीना गर्वसे फूल जाना चाहिए। ‘भिखारीपन’ का स्थान अब अपने हकके दावेने ले लिया है और उस सत्ताके सविनय विरोधने ले लिया है जो उद्धत दमनकी आड़ लेकर जमी हुई है। किसी भी अन्य प्रणालीसे देश इससे तनिक भी ज्यादा या शीघ्र प्रगति नहीं कर सकता था। इस संघर्षको समाप्त करने के लिए हमें अहिंसाकी भावनाकी कम नहीं, बल्कि और ज्यादा जरूरत है। और मुझे विश्वास है कि यदि अब भी कोई व्यक्ति ऐसा है जो भारतकी मुक्तिके लिए हिंसाको आवश्यक मानता है, तो वह इस शान्त साहससे, जो बंगाल आज दिखा रहा है, गद्गद हुए बिना नहीं रह सकता।

उलझनमें डालनेवाली रिहाई

बाबू भगवानदासको अचानक और बिना शर्त कैदके समयसे बहुत पहले छोड़ दिया गया है। उनके साथ मेरी हार्दिक सहानुभूति है। मैं जन-साधारणको यह सूचित करना चाह रहा था कि बाबू भगवानदास साहित्यिक शोधमें लगे हैं और अपने एकान्त-वासमें परम प्रसन्न हैं। जाहिरा उनके पक्षमें लेकिन असलमें उनके विरुद्ध जो भेदभाव बरता गया है, वह उन्हें स्वभावतः बहुत अखर रहा है। जैसा कि उन्होंने अपने एक खुले पत्रमें कहा है, यदि वे रिहाईके अधिकारी थे तो उसी तरह बहुत-से अन्य लोग भी थे। बनारसमें जो लोग पकड़े गये थे उनमें वे निश्चय ही मुख्य अपराधी थे। हड़ताल सम्बन्धी नोटिसका मसविदा उन्होंने ही तैयार किया था और उन्होंने ही उसे छपवाया था। प्रोफेसर कृपलानीको नोटिस बाँटनेके लिए उन्होंने ही उकसाया था। इस तमाम शरारतके सरगनाकी रिहाई कैदके समय से पहले भला क्यों होनी चाहिए? बाबू भगवानदासने इस तरहके अकाटय तर्क दिये हैं। परन्तु मुझे इसमें सन्देह नहीं कि उन्हें अधिकारियोंका ध्यान आकर्षित करने के बहुतसे मौके मिलेंगे। बंगाल, पंजाब और अन्य स्थानोंपर सार्वजनिक सभाओंका जबरदस्ती भंग किया जाना यदि अधिकारियोंके मनका सूचक है, तो हमें उससे कहीं अधिक ताप सहना होगा जितना हमने अबतक सहा है। हमारे साथ जो बरताव हो रहा है वह तुर्की हमामके ढंगका है। हम उसे सह सकें इसलिए सरकार हमें उत्तरोत्तर अधिक गरम कमरोंमें ले जा रही है।