पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 22.pdf/२८७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६३
टिप्पणियाँ

 

नोटिसमें यह दलील दी गई है:

यदि यह (सविनय अवज्ञा आन्दोलन) सफल हो गया तो इससे अपराधी प्रवृत्तिके लोगोंको ऐसी पद्धतियोंकी शिक्षा मिलेगी जिन्हें वे स्वभावतः वर्तमान या भावी प्रत्येक सरकारके विरुद्ध प्रयुक्त करनेको तैयार रहेंगे। और यदि वह असफल हो गया तो प्रगतिके क्रमको केवल पीछे ले जायेगा, और जिन लोगोंने अपनी मातृभूमिकी शिराओंमें जान-बूझकर इतना खतरनाक जहर भरा है उनकी राजनीतिक परिपक्वताके बारेमें गहरे सन्देह पैदा हो जायेंगे।

इस नोटिसके लेखकने सरकारी पक्षके समर्थनमें आवश्यकतासे अधिक दलील दे डाली है और इस प्रकार वह अपने उद्देश्यमें विफल हो गया है। नोटिसका फल सिर्फ यह निकला कि लोग और अधिक दृढ़ हो गये हैं। पहली बात तो यह कि सविनय अवज्ञा अपराधी प्रवृत्तिके लोगोंके मनोंमें न तो बिठाई जा रही है और न बिठाई जा सकती है। शिक्षित-वर्ग, महिलाएँ और छात्र अपराधी प्रवृत्तिके नहीं हुआ करते। किसानोंको भी ‘अपराधी प्रवृत्तिके लोगों’ में शामिल नहीं किया जा सकता। यदि लोगोंने शान्त रहनेकी शिक्षा न ली होती तो वे उन हमलों और अपमानोंके सामने डटे नहीं रह सकते थे जिनका ब्योरा डा० गोकुलचन्द नारंग और उनके साथी सदस्योंनें १३ दिसम्बर, १९२१ को लाहौरमें पुलिस द्वारा किये गये हमलोंके[१] सम्बन्धमें अपनी योग्यतापूर्ण और युक्तियुक्त रिपोर्टमें इतनी सजीवतासे दिया है। दूसरे, सविनय अवज्ञा हर तरहकी, वर्तमान या भावी, सरकारके विरुद्ध नहीं है। वह केवल वर्तमान सरकारके विरुद्ध है जिसने समूची जनताकी इच्छाकी अपराधपूर्ण अवज्ञा की है। तीसरे, जिस सरकारने जनताको सुनियोजित ढंगसे शक्तिहीन कर दिया हो, जनतासे उसकी आज्ञा न माननेके लिए कहना, शरारत या जहर फैलाना कैसे हो सकता है? क्या लोग उन अपमानोंमें सहायक होते रहें जो एक गैर-जिम्मेदार नौकरशाहीने उनपर लादे हैं?

परन्तु हमें डा० गोकुलचन्द नारंगकी रिपोर्टको देखना चाहिए। मेरे विचारमें यदि लोगोंको स्वतन्त्र मनुष्योंकी तरह रहना है तो इससे अनुशासनयुक्त सविनय अवज्ञाका पूर्ण औचित्य सिद्ध हो जाता है। कमेटीकी ये स्थापनाएँ हैं कि

१. स्वयंसेवक शान्तिपूर्वक कार्य कर रहे थे;

२. पुलिस अचानक ‘पीतल-मढ़ी लम्बी लाठियाँ लिये’ स्वयंसेवकों और लोगोंपर टूट पड़ी और उन्हें बिना चेतावनी दिये पीटने लगी;

३. स्वयंसेवकोंने चोटें खानेके बावजूद जब तितर-बितर होनेसे इनकार कर दिया तो वे गिरफ्तार कर लिये गये, छोड़ दिये गये और फिर गिरफ्तार कर लिये गये, और कुछ घंटोंकी हिरासतके बाद रातके कोई एक बजे अपने घरोंसे बहुत दूर अलग-अलग जगहोंपर जान-बूझकर छोड़ दिये गये।

४. कैद करनेवालोंने स्वयंसेवकोंको गन्दी गालियाँ दीं।

  1. देखिए “टिप्पणियाँ”, २२-१२-१९२१ का उप-शीर्षक “मार्केका प्रमाण”।