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समझना है, जैसे कि बर्मियोंको बुद्धके ध्येयके गूढ़ार्थ और रहस्योंको अभी समझना है। बर्मी ऐसा तभी कर सकते हैं जब उन्हें उनके ढंगसे प्रगति करने दी जाये। इसलिए बर्मामें आश्चर्यजनक जागृतिकी बातसे मुझे अत्यधिक प्रसन्नता होती है। इसमें सन्देह नहीं कि यदि बर्मी अपना प्रयत्न जारी रखें तो वे अपनी सीधी-सादी समस्याको हमारी अपेक्षा कहीं अधिक शीघ्र सुलझा सकते हैं, क्योंकि हमारे साथ तो अनेक प्रकारकी ऐसी जटिलताएँ हैं जिनसे बुद्धि चकरा जाती है।

अम्बालामें

पंजाब सचमुच गजब कर रहा है। अहिंसात्मक वातावरण पैदा करनेका श्रेय सिखोंको मिलना चाहिए और वे इसके पूर्णतया अधिकारी हैं। उनकी दृढ़ता, ननकाना साहबमें[१] उनका आश्चर्यजनक त्याग, उनके सर्वश्रेष्ठ नेताओंकी गिरफ्तारी और सरकारका पूरी तरह घुटने टेक देना―इन सबसे पंजाब आज गर्व, आशा और त्याग व अहिंसाकी भावनासे भरा है। इसलिए पाठकको अम्बालाके लाला दुनीचन्दके निम्नलिखित पत्रको[२]पढ़कर आश्चर्य नहीं होना चाहिए:

लाला दुनीचन्द अम्बालाकी वर्षोंसे सेवा कर रहे हैं। असहयोगसे पहले उन्हें अपनी प्रेक्टिससे बहुत आय थी, जिसका बहुत बड़ा भाग वे उन अनेक सार्वजनिक कार्यों में लगा देते थे जिनका सूत्रपात उन्हींके द्वारा हुआ था। इसलिए उन्हें अपने गिर्द काम करनेवाले त्यागी नवयुवकोंका एक दल इकट्ठा करनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई। वे उन्हें अब बिना किसी कठिनाईके जेल जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। स्वराज्य त्यागका ही तुरन्त प्रगट होनेवाला और प्रत्यक्ष फल है। इसलिए अम्बालाके नागरिकोंको स्वराज्यके आगमनका अहसास हो रहा है। पंजाब तथा अन्य स्थानोंमें महिलाओंमें जो जागृति आई है वह एक ऐसी चीज है जिसका सही मूल्यांकन हम अभी नहीं कर सकेंगे। सच बात तो यह है कि लाला दुनीचन्दके लिए त्यागका मार्ग प्रशस्त करनेवाली श्रीमती दुनीचन्द हैं। उन्होंने ही उन्हें इसके लिए तैयार किया है और श्रीमती दुनीचन्दका कोई अकेला उदाहरण नहीं है। मुझे ऐसी अनेक बहनोंसे परिचयका सौभाग्य प्राप्त है जो अपने पतियोंकी महानताके लिए उत्तरदायी हैं।

रोहतकमें

जैसा अम्बालामें है वैसा ही रोहतकमें है। ‘यंग इंडिया’ के पृष्ठोंके द्वारा जनता लाला शामलालके त्यागसे परिचित हो चुकी है। फर्क सिर्फ यह है कि उन्होंने वह अपनी पत्नी और माँ-बापके विरोध के बावजूद किया है। उन्हें जबरदस्त कठिनाइयों से टक्कर लेनी पड़ी। परन्तु उन्होंने उन सबको परास्त कर दिया। उन्हें अब अन्य मित्रोंके साथ गिरफ्तार होनेका सम्मान प्राप्त हुआ है। ये व्यक्ति अपने देश के लिए

  1. फरवरी १९२१ में; देखिए खण्ड १९, पृष्ठ ४२८-३२।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है; उसमें असहयोगकी स्थानिक गति-विधियों और अम्बाला जिले में स्वयंसेवकोंकी गिरफ्तारीका वर्णन था।