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१०१. पत्र: जोजेफ जे० घोषको

[मंगलवार, २४ जनवरी, १९२२][१]

प्रिय श्री घोष[२],


आपके पत्रके लिए धन्यवाद। आपका पत्र मिलते ही मैंने उसे अपने पुत्रके पास भेज दिया था। उसका यह तार अभी-अभी आया है:

घोषका पत्र विस्मयकारी आरोप झूठे इलाहाबादके स्वयंसेवकोंका सबसे अच्छा आचरण।

क्या ऐसी कोई सम्भावना है कि आपको गलत सूचना दी गई हो? सम्भव है मेरे पुत्रको ही गुमराह किया गया हो। ऐसी तो कल्पना भी नहीं कर सकता कि वह मुझसे छल करेगा। मैं चाहता हूँ कि आपके सहयोगसे में मतभेदकी असलियतका पता लगाऊँ। इतना और कह दूं कि मेरा पुत्र बड़ा सावधान रहता है और उसकी राय हमेशा ठीक उतरती है। मैं यह भी मानता हूँ कि वह संघर्षकी भावनाको बड़ी अच्छी तरह समझता है। अच्छा हो कि आप उससे मिलकर इस मामलेपर बात कर लें। मैं उसे आपसे मिलनेके लिए लिख रहा हूँ।

मैं सभी प्रकारके धरनोंको बन्द करनेकी बात नहीं सोचता। मैं समझता हूँ कि धरने यदि पूर्णतया शान्तिपूर्ण हों तो उनका एक नैतिक महत्त्व होता है।

आज्ञापालन न करनेवाले लड़कोंको दण्ड देनेका आपको अवश्य पूर्ण अधिकार था। अवज्ञा करनेवाले लड़कोंको निकाले जाने का खतरा उठाने के लिए भी तैयार रहना ही चाहिए।

मुझे दुःख है कि आपको यह तमाम परेशानी उठानी पड़ रही है।

आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७६५६) की फोटो-नकलसे।

 
  1. वोषके ३१ जनवरी, १९२२ के उत्तर (एस० एन० ७८१०) से।
  2. जोज़ेफ जे० घोष; इलाहाबादके मॉडर्न हाईस्कूलके तत्कालीन प्रधानाध्यापक।